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जख्म दे के हवा करे कोई

2122  -  1212  -  22  

जख्म दे के हवा करे कोई

इस तरह भी वफ़ा करे कोई

 

आप तो मेरी जान हो जानम

देख कर ये जला करे कोई

 

प्यार में शर्त तुम लगाते हो

सोच कर के दगा करे कोई

 

दूर मंजिल तो रास्ता केसा

रात औ दिन चला करे कोई

 

वो बना है मरीज इस खातिर 

पास उस के रहा करे कोई

 

हर कदम झूठ फ़िक्र धोखा है

अब कहाँ तक सहा करे कोई

.

मुनीश “तन्हा” नादौन 9882892447

मौलिक व् अप्रकाशित 

 

 

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Comment by Samar kabeer on May 6, 2016 at 6:42pm
जनाब मुनीश'तन्हा'जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल कही, दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ ।
दूसरा शैर शुतरगुर्बा का शिकार हो गया है, ऊला में 'मेरी'और सानी में 'हमको'
इसी तरह पांचवें शैर का ऊला मिसरा बह्र में नहीं,इस तरह कर लें:-
"इसलिये वो मरीज़ बन बैठा"
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 6, 2016 at 4:10pm
अच्छा प्रयास .सादर .

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