For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आप खुश रहना................

है दिए जो जख्म आपने दिल को,

भर दे उसे कोई किसी में है ओ प्रीत कहाँ,

बहते मेरे लावारिस अश्को को कोई थामले,

है एक तेरे सिवा दूसरा मन्मित कहाँ, 

है किये जो घोर अँधेरा मेरे जीवन में,

आक़े करे कोई रोशन है यैसी तक़दीर कहाँ,

जब ह्रदय की आशाएं बंद हो चली हो,

फिर इस बेचैन दिल को मिलता है करार कहाँ,

जब तुम कर चले बेदरंग इस जीवन को,

फिर इस जीवन में किसी और प्रीत रंग की है आश कहाँ,

जिनके प्रेम में था सारी दुनिया का नूर समाया,

प्यार का अब कोई नूर मिले येसा ओ अब दिलवर कहाँ,

तेरे गमे इश्क-में, है अश्क इतने पिए

किसी और गमे इश्क की अब है प्यास कहाँ,

तेरे प्रीत पथ पर हम मिल साथ चले इतना  लम्बा  सफ़र, 

के अब मंजिल की आश में किसी प्रीत-पथ पर चलने की अब चाह  कहाँ,

तू मुझमे समाई मै तुझमे समाया फिर भी ना तुम्हें समझ में आया

समझे मुझे कोइ इस खैराती जीवन में  है यैसी अब चाह कहाँ,

मिल ही गयी आखी आपको मंजिल उसे सजा-संवार लेना,

देखना है मुझको अब मेरी आखिरी मंजिल है कहाँ,

 

                                                                     "अभिराजअभी"

 

Views: 407

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sanjay Rajendraprasad Yadav on March 4, 2011 at 10:30am
बहुत -बहुत धन्यवाद  गणेश जी,    आप को मेरा नमस्कार
मै कोई कवी नहीं और ना ही कोई लेखक,मै तो बस आप के इस साईड पर जुड़ना ही मै अपने आप को भाग्यवंत समझता हूँ ,गणेश जी "बागी" मेरे साथ कुछ घटनाएँ ऐसी हो गयी जो मै कभी खिस्सो कहानियों में पठता-सुनता था,जीवन में पैसे का महत्व आज कितना मायने रखता है ये मैंने ,मेरे अटूट-अनमोल रिश्ते टूटने के पीछे पैसे की खनकार की आवाजे अई,मै किन-किन परिस्थितियों से गुजरा हूँ ,मेरे ह्रदय  में कितने दर्द है,यह सब हम अभी आप को बता नहीं सकते, सिर्फ आप को यही कहना चाहूंगा की यैसे ही कुछ हालत उत्पन्न होने की वजह से हमने कुछ लिखने की सोची,पर दुःख इस बात का की मै सही नहीं लिख पा रहा हूँ,मै चाहता हूँ की आप मेरी कुछ पंक्तियों को सही ले में कर-या करादे जिन्हें मै कुछ सालो बाद एक किताब के रूप में परिवर्तित कर दूँ,
       जो कोई भूल हुई हो उसके लिए क्षमा चाहूँगा,!
 
आपका अपना ओ बी ओ सभासद
संजय आर यादव
      मुंबई

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 3, 2011 at 9:41pm
प्रयास अच्छा है , रचना को और माजने की जरूरत है |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
19 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service