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रात की चांदनी मैं जो तू बे-नकाब हो जाए 
खुदा  का चाँद  भी फिर लाजबाव हो जाए 

.

तेरे गुलाबी होंठों पे जो गिर जाए शबनम 
बा-खुदा शबनम खुद शराब हो जाए 

.
तेरी उदासी से होती है सीने मैं चुभन 
तू जो हंस दे तो काँटा गुलाब हो जाए 

.

उम्र भर हाथों मैं लेकर पढता ही रहूँ 
तेरा चेहरा गर  कोई किताब हो जाए 

.
हुस्नवाले संवर सकती है शायरी मेरी 
कभी हमराह मेरे जो तेरा शबाब हो जाए  

 

-सचिन देव -
मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Sachin Dev on September 26, 2013 at 5:15pm

सादर नमस्कार, वीनस केसरी जी आपके विचारों को जानकर मन मैं व्याप्त कुछ शंकाओं / आशंकाओं का पटाक्षेप हुआ .... और ये निराधार ही साबित हुईं, और किसी भी वे-वजह के विवाद कि स्तिथि उत्पन्न होने से बच गई, जिसकी कि आपकी कल की क्रिया की अपनी प्रतिक्रिया पर होने की आशंका थी..., किन्तु आपने मेरे जवाव मैं छिपे मेरे इरादों को समझा और मैं अपने जवाव से आप को किसी भी प्रकार से आश्वस्त कर सका तो ये मेरे लिए सुकून की बात है ... और आपकी शुभकामनाएं पाकर काफी उत्साहित महसूस कर रहा हूँ... ! आपके विचारों का सदैव स्वागत रहेगा.... ! हार्दिक आभार आपका ! 

Comment by वीनस केसरी on September 26, 2013 at 4:44pm

हाँ भाई मेरा कमेन्ट थोडा तीखा, थोडा कठोर था, मगर यकीन जानिये आप अपने विचार को स्पष्ट रूप से रखें इसके लिए ये आवश्यक था,
आप मंच पर बने रहें
विधागत मूलभूत तत्वों को जानें समझें
यही कामना है
यही शुभकामना है
जब हम सामने वाले की बात को काटने के लिए कुछ भी कहना शुरू कर देते हैं तो एक दिन हम अपनी बात भी काट देते हैं और विरोधाभास पैदा होता है, यदि हमारी एक विधारधारा हो तो ऐसी नौबत कभी नहीं आती ,,,,

आपका स्पष्ट मुखर हो कर कहना कि,
मुझे लगता है शायद अब मैंने सीखने की दिशा मैं सही राह पकड़ ली है ... तो फिलहाल कहीं और जाने का इरादा नही है ....

मंच को आश्वस्त करता है और इस दिशा में आपके बढाए कदम की सराहना करता हूँ
निरुत्साहित न होईये, हर बात का एक अर्थ होता है उन अर्थों के साथ स्वीकारने पर हम समझ को विस्तार देते हैं
आपका तहे दिल से स्वागत है

सादर

Comment by Sachin Dev on September 26, 2013 at 12:52pm

सादर नमस्कार महोदया वीनस केसरी जी ... आपकी प्रतिक्रिया का सही आशय मैं समझ नहीं पा रहा हूँ , जैसा कि आपने खुद कहा मैं पहले से ही दिग्भ्रमित हूँ अपनी रचना की विधा के बारे मैं ... और फिर आपके ये कम से कम कुछ कठोर शब्दों से भरी प्रतिक्रिया थोडा निरुत्साहित सा ही करती है ..... यधपि आपके द्वारा कही गई अंतिम पंक्ति 
आशा करता हूँ आगे आपकी विधाजन्य रचनाएँ पढ़ने को मिलेंगी,,, कम से कम कोशिश तो आप कर ही सकते हैं ... 
इतनी कठोरता के बीच थोड़ी सी उम्मीद जगाती है और हौसला देती है ... बाकी .... आपके द्वारा कही बातों का आपकी ही भाषा मैं उत्तर देना फिर से इस मंच पर वही घिसा - पिटा विवाद उत्पन्न करेगा ... और रही बात राह पकड़ने की ... तो मुझे लगता है शायद अब मैंने सीखने की दिशा मैं सही राह पकड़ ली है ... तो फिलहाल कहीं और जाने का इरादा नही है .... बस इतना ही कह सकता हूँ विनम्रता के साथ .... आपके विचारों का सदा स्वागत रहेगा महोदय.... शुक्रिया 


Comment by Sachin Dev on September 26, 2013 at 12:43pm

आदरणीया अनुपमा बाजपेई जी .... प्रयास की सराहना हेतु .... आपका हार्दिक आभार ! 

Comment by Sachin Dev on September 26, 2013 at 12:42pm

प्रयास की सराहना के लिए हार्दिक धन्यबाद ब्रिजेश जी... और आपकी सलाह हेतु ह्रदय से आभार... निश्चित ही इस पर अमल करने का प्रयास रहेगा .... ! 

Comment by Sachin Dev on September 26, 2013 at 12:40pm

आदरणीय विजय निकोर जी .... आपका हार्दिक शुक्रिया प्रोत्साहन के लिए ... ! 

Comment by Sachin Dev on September 26, 2013 at 12:39pm

आदरणीय मीना पाठक जी... आपका हार्दिक आभार ... रचना पर अपने विचार देने के लिए ..... ! 

Comment by वीनस केसरी on September 26, 2013 at 3:12am

महोदय आप एक कमेन्ट में कहते है -

//. इस पर इतना ही कहना चाहूँगा भाई कि आप जिसे गजल कह रहे हैं, उसे मैं सिर्फ अपने मन से निकली एक रचना कहता हूँ..//

फिर आगे दूसरे कमेन्ट में आप लिखते हैं -

// आपका हार्दिक शुक्रिया चंद्रशेखर पाण्डेय जी ... जो आपने गजल की भावना को मान दिया ! //

ऐसा विरोधाभास ??? !!!!
भाई ज़रा आप स्पष्ट करेंगे कि आप इस काव्य रचना को किस विधा के अंतर्गत मानते हैं ???

और आपको सचेत कर दूं कि आपका रटा-रटाया घिसा-पिटा.. /काव्य को काव्य रहने दो कोई नाम न दो/ यहाँ ओबीओ पर नहीं चलेगा 

बहर का इतना ही भय है तो रदीफ काफिया से क्यों उलझे पड़े हैं ???
अतुकांत लिखिए, कहानी लिखिए, उपन्यास लिखिए

ये आपस में सीखने सिखाने का मंच है,,,, सीखना हो तो मन से सीखिए,
वाहवाही के शौक़ीन हों तो फेसबुक की राह लगिये

आशा करता हूँ आगे आपकी विधाजन्य रचनाएँ पढ़ने को मिलेंगी,,, कम से कम कोशिश तो आप कर ही सकते हैं ...

Comment by annapurna bajpai on September 25, 2013 at 11:27pm

आदरणीय सचिन जी काफी  अच्छा प्रयास है , बहुत सुंदर , बधाई आपको । 

Comment by बृजेश नीरज on September 25, 2013 at 9:55pm

अच्छा प्रयास है. इस प्रयास पर आपको हार्दिक बधाई!

इस मंच पर ग़ज़ल की कक्षा नाम से एक समूह है. कृपया वहां पर जो पोस्ट हैं उन्हें देखें, बहुत लाभ होगा.

कृपया ध्यान दे...

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