For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बनते संत महान, काम घटिया ही करते।
खोले धर्म दुकान, कर्म बनिया के करते॥
उनसे लेकर मंत्र, हृदय विह्वल हो रोया।
ठगे गये हम लोग, देख अपनापन खोया॥

छोड़ो माया मोह, नित्य हमको समझाया।
कब्जाकर पर भूमि, आश्रम निज बनवाया।
शैम्पू साबून तेल, बेंचते संत वणिक या।
ठगे गये हम लोग, देख अपनापन खोया॥

चमत्कार बहु भांति, भांति अनुभव करवाते।
भूले सारा ज्ञान, जेल अपवित्र बताते॥
परम संत क्या जेल, पलंग जंगल हो या?
ठगे गये हम लोग, देख अपनापन खोया॥

एक दिवस प्रण ठान, संत जंगल में बैठे।
लायेगा करतार, साधना के बल ऐंठे॥
कहाँ गया वो तेज, आज तू कारा सोया?
ठगे गये हम लोग, देख अपनापन खोया॥

किस पर हो विश्वास, जगत ठग से बोझिल है।
सदमार्ग बताता संत, किन्तु छल में शामिल है॥
जप तप व्रत औ ध्यान, लगे जीवन ही खोया।
ठगे गये हम लोग, देख अपनापन खोया॥

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 390

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 17, 2013 at 11:54pm

भाई विंध्येश्वरीजी, आपका रचनाकर्म उत्साहित कर रहा है.

एक कवि, यानि बुद्धिमान जन,  का दायित्व भाव और शब्दों का मात्र निरुपण करना न हो कर समाज की विड़बनाओं पर शाब्दिक कुठाराघात भी करना है. किन्तु, कवि के नाम पर लोग-बाग तमाम कुठाराघात करने का दायित्व तो याद रखते हैं लेकिन भाव और शब्दों के मध्य संतुलन हेतु आवश्यक प्रयास की अनदेखी कर जाते हैं.

आपके प्रयासों के प्रति मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ.

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on September 16, 2013 at 7:33pm

बहुत सुन्दर महोदय! सभी बातें आपने खुलकर कह दी!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
5 hours ago
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
14 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
14 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service