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माँ मुझे अपना आसरा दे दे

माँ को क़ुदरत सलाम करती हॅ
माँ को फ़ितरत सलाम करती हॅ

प्यार के सब बने पुजारी हैं
आस्था के बने भिखारी हैं

जब दिया मैं जलता हूँ
देख कर तुझ को मुस्कुराता हूँ

अपने सीने से तू लगा मुझ को
और स्नेह से तू सजा मुझ को

अपनी ममता का आसरा दे दे
अपने चरणो मैं तू जगह दे दे

फूल बनकर महकता जाऊँ मैं
और स्नेह मैं गुनगुनाऊँ मैं

मेरी माता महान है कितनी
यह हक़ीक़त जवान है कितनी

दरदे दिल की मेरे दवा देदे
माँ मुझे अपना आसरा दे दे

माँ मुझे अपना आसरा दे दे

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Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 17, 2010 at 10:01am
अपनी ममता का आसरा दे दे
अपने चरणो मैं तू जगह दे दे,

बहुत ही खुबसूरत नज्म लिखी है आपने आदिल साहिब, बहुत खूब, विजय पर्व दशहरे की बधाई स्वीकार करे |
Comment by Ratnesh Raman Pathak on October 16, 2010 at 10:04pm
अपनी ममता का आसरा दे दे
आपने चरणो मैं तू जगह दे दे

फूल बनकर महकता जाऊँ मैं
और स्नेह मैं गुनगुनाऊँ मैं

aadil jee maa apki pukar sun rahi hai aur jald ही chamatkar karengi,kyoki is sacche darbar se koi kahli hath nahi jata hai

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