For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ७१

2212 1212 2212 1212

ख़ुशियों से क्या मिले मज़ा, ग़म ज़िंदगी में गर न हो
शामे हसीं का लुत्फ़ क्या जब जलती दोपहर न हो

लुत्फ़े वफ़ा भी दे अगर बेदाद मुख़्तसर न हो

इक शाम ऐसी तो बता जिसके लिए सहर न हो

हालात जीने के गराँ भी हों तो क्या बुराई है
मजनूँ मिले कहाँ अगर सहराओं में बसर न हो

ऐसी रविश तो ढूँढिए गिर्यावरी ए आशिक़ी
तकलीफ़ देह भी न हो, नाला भी बेअसर न हो

ख़ुशियों के मोल बढ़ते हैं रंजो अलम के क़ुर्ब से
तादाद की बिसात क्या आगे में गर शिफ़र न हो

कैसी है बद ख़्याली-ए-अहले ज़माँ, कहते फिरें  

करते हैं इश्क़ लोग वो जिनमें कोई हुनर न हो

दुनिया है ख़्वाब गाह गर, बालीं परस्त मैं रहूँ  
सोने दे राज़, ख़ुद की अब ताज़िंदगी ख़बर न हो

~ राज़ नवादवी

“मौलिक एवं अप्रकाशित”

बेदाद- अनीति, अत्याचार; मुख़्तसर- संक्षिप्त; रविश- पद्धति, आचार-विचार; गिर्यावरी ए आशिक़ी- प्रेम में आँसू बहाना; नाला- आर्तनाद, पुकार; क़ुर्ब- सामीप्य; शिफ़र- शून्य; अहले ज़माँ- ज़माने के लोग; बालीं परस्त- पलंग पे पड़ा रहने वाला, आराम तलब

 

Views: 781

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by राज़ नवादवी on November 19, 2018 at 4:25pm

आदरणीय सुशील सरना जी, ग़ज़ल में आपकी शिरकत एवं ज़र्रा नवाज़ी का तहे दिल से शुक्रिया. सादर 

Comment by Sushil Sarna on November 19, 2018 at 3:52pm

हालात जीने के गराँ भी हों तो क्या बुराई है
मजनूँ मिले कहाँ अगर सहराओं में बसर न हो
वाह बहुत खूबसूरत अशआर हैं सर आपकी इस खूबसूरत ग़ज़ल के। दिल से बधाई आदरणीय।

Comment by राज़ नवादवी on November 19, 2018 at 3:25pm

मुहतरम समर करीब साहब, क्या 'कैसे उड़ेगा वो जिसे उड़ने को बालो पर न हो' को यूँ करने से बात बनेगी?

ख़ुशियों से क्या मिले मज़ा, ग़म ज़िंदगी में गर न हो
कैसे उड़ेगा वो भला बालों पे जिसके पर न हो

 

बाल- डैना जिसपे पंख/ पर लगते हैं;

पर- पंख

सादर 

Comment by राज़ नवादवी on November 19, 2018 at 3:18pm

मुहतरम समर करीब साहब, आदाब. हौसला अफज़ाई और इस्लाह का तहेदिल से शुक्रिया. मतले में बदलाव लाता हूँ. सादर. 

Comment by Samar kabeer on November 19, 2018 at 2:45pm

जनाब राज़ नवादवी साहिब आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,बधाई स्वीकार करें ।

कैसे उड़ेगा वो जिसे उड़ने को बालो पर न हो'

इस मिसरे में रदीफ़ 'न हो' की जगह "न हों" हो रही है,'बाल-ओ-पर' बहुवचन है,देखियेगा ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"धन्यवाद"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"ऑनलाइन संगोष्ठी एक बढ़िया विचार आदरणीया। "
10 hours ago
KALPANA BHATT ('रौनक़') replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"इस सफ़ल आयोजन हेतु बहुत बहुत बधाई। ओबीओ ज़िंदाबाद!"
17 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"बहुत सुंदर अभी मन में इच्छा जन्मी कि ओबीओ की ऑनलाइन संगोष्ठी भी कर सकते हैं मासिक ईश्वर…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a discussion

ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024

ओबीओ भोपाल इकाई की मासिक साहित्यिक संगोष्ठी, दुष्यन्त कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय, शिवाजी…See More
Sunday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय जयनित जी बहुत शुक्रिया आपका ,जी ज़रूर सादर"
Saturday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय संजय जी बहुत शुक्रिया आपका सादर"
Saturday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय दिनेश जी नमस्कार अच्छी ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की टिप्पणियों से जानकारी…"
Saturday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"बहुत बहुत शुक्रिया आ सुकून मिला अब जाकर सादर 🙏"
Saturday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"ठीक है "
Saturday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"शुक्रिया आ सादर हम जिसे अपना लहू लख़्त-ए-जिगर कहते थे सबसे पहले तो उसी हाथ में खंज़र निकला …"
Saturday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"लख़्त ए जिगर अपने बच्चे के लिए इस्तेमाल किया जाता है  यहाँ सनम शब्द हटा दें "
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service