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“ माँ! तुम्हे भैया के फ्लेट से आये हुए, यहाँ मेरे पास दो महीने हो गये है. उनका फ्लेट काफी बड़ा भी है, कुछ महीने वहाँ रह आओ. आखिर! उन्हें आपकी कमी भी तो महसूस होती होगी “  

अचानक अपने कमरे में से निकलकर छोटे बेटे के इन उदारता भरे शब्दों को सुनकर, माँ को दो माह पहले बड़े बेटे की उदारता याद आ गई. आँखों में नमी लेकर अपने कपड़ो का बेग जमाते हुये उसे मन में दोनों बेटों के फ्लेट,  अपनी कोख से बहुत  ही छोटे लग रहे थे..

 

 जितेन्द्र पस्टारिया

(मौलिक व् अप्रकाशित)      

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Comment by Dr. Vijai Shanker on March 27, 2015 at 5:14am
भाव बहुत बड़े हैं , बधाई , प्रिय जीतेन्द्र जी , सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 26, 2015 at 10:43pm

आदरणीय जितेन्द्र जी मर्मस्पर्शी लघुकथा है. अपने मर्म को बड़े प्रभावकारी ढंग से अभिव्यक्त करने सफल लघुकथा. आपको हार्दिक बधाई. 

कथा में वाक्य विन्यास स्तर पर सुधार अपेक्षित है. सादर 

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