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एक बंजर व्योम तो हम पर तना है !

अपरिचय, संवेदना है, भावना है ,

उसे क्या जो पुष्प से पत्थर बना है !

मिले उनको हर्ष के बादल घनेरे ,
एक बंजर-व्योम तो हम पर तना है !

चित्र है उत्कीर्ण कोई चित्त पर ,
ठहर जाती जहां जाकर कल्पना है !

सूर्य की ये रश्मियाँ बंधक बनीं हैं 
एक अंधी कोठरी मे ठहरना है !

रास्ते अब स्वयं ही थकने लगे हैं 
पूछता गंतव्य मन क्यों अनमना है ?

_______________________प्रो. विश्वम्भर शुक्ल 

 (मौलिक और अप्रकाशित )


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Comment

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Comment by अरुन 'अनन्त' on July 1, 2013 at 12:31pm

वाह मजा आ गया आदरणीय, इतनी सुन्दरता और सरलता से लिखी पंक्तियों ने मंत्रमुग्ध कर दिया. हार्दिक बधाई स्वीकारें.

अपरिचय, संवेदना है, भावना है ,

उसे क्या जो पुष्प से पत्थर बना है ! ... कोटिशः बधाई इस पंक्ति हेतु.

Comment by वेदिका on July 1, 2013 at 11:54am

मिले उनको हर्ष के बादल घनेरे ,
एक बंजर-व्योम तो हम पर तना है !

सुंदर बिम्ब से सजी सुंदर कविता पर बधाई!!! 

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