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पत्थर हो गया है दिल चोट खाते खाते...

पत्थर होगया है दिल चोट खाते खाते ,
असर नहीं करता है अब दर्द कोई आते जाते,
जिंदगी को जीना सिखागयी वो जाते जाते,
अहसान इतना है की मै मर जाऊंगा चुकाते चुकाते,
तनहइयां अब मित्र बन गयी है तडपाते-तडपाते,
यादे बन गयी है तस्वीर याद आते आते,
पत्थर होगया है दिल चोट खाते खाते

न समझ सकी वो मुझको कभी भी
थक गया मै उसका दिल पिघलाते-पिघलते
ऐसा बेहोश किया मेरे कातिल ने कि
अब तक होश न आया मुझे आते आते,
भुला न सकूँगा मै उसे कभी भी,
और क्या कहूँ मैं अब आपसे जाते जाते,
पत्थर होगया है दिल चोट खाते खाते!!
बिरेश कुमार 'वीर'

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Comment

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Comment by कमलेश भगवती प्रसाद वर्मा on June 11, 2010 at 8:23pm
और क्या कहूँ मैं अब आपसे जाते जाते,
पत्थर होगया है दिल चोट खाते खाते!!


बिरेश जी..धन्यवाद...
Comment by Amrita Choudhary on May 29, 2010 at 7:40pm
hasin hadsa....:)

nice n heart touching lines...
Comment by PREETAM TIWARY(PREET) on May 11, 2010 at 10:35am
पत्थर होगया है दिल चोट खाते खाते ,
असर नहीं करता है अब दर्द कोई आते जाते,
जिंदगी को जीना सिखागयी वो जाते जाते,
अहसान इतना है की मै मर जाऊंगा चुकाते चुकाते,
waah biresh bhai waah......dil ko chu lene wali rachna hai ye aapki....aapka likhne ka tarika dekh kar lagta hai ki aap bahut accha likhne wale hain future me aur isse aur bhi accha likhne wale hain.....ab to besabri se aapki agli rachna ka intezaar rahega.....
thanks for share such a nice poem with us

Preetam Kumar Tiwary

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 11, 2010 at 9:33am
पत्थर होगया है दिल चोट खाते खाते ,
असर नहीं करता है अब दर्द कोई आते जाते,
जिंदगी को जीना सिखागयी वो जाते जाते,
अहसान इतना है की मै मर जाऊंगा चुकाते चुकाते,
Waah bhai waah, bahut achha likha hai aapney, Pathar ho gaya dil chot khatey khatey.... really dil ko chhu leney wali line hai yey, Biresh jee aap ki kalam sahi jaa rahi hai, bahut badhiya lagey rahiyey,
Comment by Biresh kumar on May 10, 2010 at 5:03pm
dil se nikle hi hai ap sabke dil me utarne ke liye
thanks
ye to sirf suruat hai .........
hum to apke dil me utar kr ghar bnana chahte hai sarkar
Comment by Admin on May 10, 2010 at 4:13pm
पत्थर होगया है दिल चोट खाते खाते ,
असर नहीं करता है अब दर्द कोई आते जाते,
जिंदगी को जीना सिखागयी वो जाते जाते,
अहसान इतना है की मै मर जाऊंगा चुकाते चुकाते,
बहुत बढ़िया बिरेश जी, एक बार फिर अच्छी रचना पढने को मिली है, काफी सुंदर कविता बन पड़ी है , धन्यवाद,

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