For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

राजू गाँव के एक बेहद ही गरीब मजदूर का बेटा था | अट्ठारह-उन्नीस साल की उम्र रही होगी |  राकेश बाबू अपने साथ उसे शहर ले आये थे | सहायक प्रवक्ता की नौकरी लगने के साथ ही उनकी शादी शहर में ही एक लड़की से हो गई | राजू घर का सारा काम करता था । राकेश को भईया जी और उनकी पत्नी को भाभी माँ कह कर संबोधित करता । शादी के तीन साल बाद एक बेटा और अपनी पत्नी को छोड़ राकेश बाबू सड़क दुर्घटना के शिकार हो गये । अनुकम्पा के आधार पर राकेश की पत्नी को उसी कॉलेज में क्लर्क की नौकरी मिल गई । मरने से पहले राकेश बाबू राजू से भाभी माँ और बच्चे की देख-रेख के लिये कह गये थे । 
राजू  भाभी माँ और बच्चे की देख-रेख व सेवा बहुत ही ईमानदारी से कर रहा था । धीरे-धीरे सब सामान्य होने लगा था । 
इधर घर में एक अजीब सी बात हो रही थी, जो राजू को तनिक नहीं भाती । भाभी के साथ घर में एक युवक बराबर आने लगा था, जिसे राकेश की पत्नी कॉलेज का सहकर्मी बताती थी । ज्यादा दिन नहीं गये राजू ने घर में वो कुछ देख लिया जिसे समाज में अनैतिक कहा जाता है । राजू से सहन नहीं हुआ और वह सीधे सीधे भाभी माँ से कह बैठा, "यह जो कुछ हो रहा है, ठीक नहीं है..  जाते जाते भईया जी मुझ पर एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी सौंप गये हैं..  मैं उस जिम्मेदारी को निभाने में असफल हो रहा हूँ । उस व्यक्ति का घर में आना-जाना मुझे ठीक नहीं लगता ।"
"राजू यह तुम क्या कह रहे हो, वो मेरे कार्यालय में साथ काम करते है, औपचारिकतावश ही यहाँ आते है.. तुम गलत न सोचो।.."
"भाभी माँ,  कुछ कहने की जरुरत नहीं है.. मैंने कल ही अपनी आखों से आपको उनके साथ.. ."
भाभी माँ गुस्से में बोली, "देख राजू....  तू नौकर है, नौकर की तरह ही रह ! तूझे मेरे व्यक्तिगत मामलों में नाक घुसेड़ने की जरुरत नहीं है.. समझाऽऽऽ .. "
"नहीं भाभी माँ, भईया जी मुझपर जो जिम्मेदारी सौंप गये हैं, उससे मैं मुँह नहीं मोड़ सकता",  राजू सिर नीचे किये हुए बोला।
राकेश की पत्नी ताड़ गयी, फिर तो उसने जो कुछ कहा, उस पर राजू लगभग चीखते हुए कहा, "छि:-छि:,  क्या कह रही हैं भाभीऽऽ ?  गरीब हूँ, पर संस्कारहीन नहीं, ऐसी घिनौनी बातें.. मैं तो सोच भी नहीं सकता..." 
"फिर से सोच ले राजू, बात मान ले तो मालिक की तरह रहेगा.. ।" 
"सोच लिया.. प्राण दे दूंगा पर ऐसा पाप..  ओऽऽह .. "
अगले दिन पुलिस राजू को मारती-पीटती ले जा रही थी, "चल साले, तुझ जैसों के लिए ही पब्लिक चीख-चीख कर फांसी की मांग कर रही है ।  नमकहराम.. . अपनी मालकिन पर ही..."
आगे के शब्द गुस्सायी भीड़ की ’मारो-मारो’ के तुमुल शोर में घुलते चले गये.. ...
पिछला पोस्ट :लघु कथा :- सौदा

Views: 1299

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 31, 2013 at 11:07pm

आदरणीया वंदना जी,  बहुमूल्य टिप्पणी हेतु ह्रदय तल से आभार । 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 31, 2013 at 11:05pm

आदरणीया गीतिका जी, लघुकथा पसंद करने और सराहना हेतु ह्रदय से आभार व्यक्त करता हूँ । 

Comment by vandana on August 31, 2013 at 6:24am

दिमाग को झकझोरती लघुकथा ....चरित्र का इतना पतन !!!!!

Comment by वेदिका on August 31, 2013 at 12:15am

ऐसा भी होता है इस समाज में:-( ,,, आश्चर्य होता है अगर ऐसा होता है तो|

इतनी दुखद सच्चाई बयान करने के लिए धन्यवाद आदरणीय बागी जी! 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 17, 2013 at 4:16pm

बहुत बहुत आभार आदरणीया अरुणा कपूर जी ।


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 17, 2013 at 4:16pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय प्रदीप सिंह कुशवाहा जी, आशीर्वाद बनाये रखें ।


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 17, 2013 at 4:13pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी, आपकी सराहना है जो लेखन हेतु उत्साहित करती है , बहुत बहुत आभार ।


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 17, 2013 at 4:12pm

लघु कथा की सराहना हेतु बहुत बहुत आभार भाई संदीप पटेल जी ।


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 14, 2013 at 11:05pm

लघु कथा सराहने हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीया सन्नो दी |


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 14, 2013 at 5:12pm

सराहना हेतु आभार आदरणीय सतीश भईया ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
7 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
7 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दिनेश जी, बहुत धन्यवाद"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service