For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लघु कथा : "अधिकार"

सूरज  बदहवास सा खेतों के मेड़ों पर चला जा रहा था , बचपन में पिता का साया सर से छिन गया था , बहनों की शादी हो चुकी थी, जिनसे उसके उम्र का फासला बहुत था, उम्र अभी १७ वर्ष मगर जिम्मेदारियों का पहाड़ सर पर, गरीबी हो तो इंसान के लिए छोटी छोटी जरूरतें भी पहाड़ जैसी ही लगती हैं. छोटे चाचा ने सारी जमीने अपने नाम करा ली थी..सुरजू,,,,यही नाम था घर में सब प्यार से विषाद से इसी नाम से बुलाते थे, बहने तो उसे छोटा सा बच्चा समझती थीं, मगर सुरजू का मन अपनी उम्र से अधिक सोचने लगा था. सुबह सुबह एकलौते छोटे से खेत के टुकड़े पर जाकर अपनी फसल को निहारना , एक बैल जिसके लिए दाने, पानी का इन्त्जाम  करना, एक छोटी सी फसल और पूरे वर्ष माँ , बेटे का पेट और अन्य जरूरतें .शायद कठिन कहने से काम नहीं चल सकता , बहुत कठिन था, बहने कुछ पैसे भेजती रहती थी. सबसे छोटी बहन सुरजू का बहुत ख़याल रखती थी,और उसकी जरूरतों की ताकीद करती रहती थी, क्योंकि इस बार उसकी १२ वी की परीक्षा में खरा उतरना था.

कुछ दिनों से मन में एक खलिश थी, क्योंकि उसके दोस्त रमेश ने जो उसके दुःख तकलीफ का हमराज था, उसे सलाह दी थी की वो अपने चाचा पर मुक़दमा दायर कर दे , और आज उस मुकदमे की तारीख थी, और साथ ही १२ बजे के बाद उसका इम्तिहान भी था. कैसे करेगा वो ये सब , अभी तो वो माइनर  है - कोर्ट की भाषा में उम्र के लिहाज से , बहनों ने भी उसे बहुत नसीहत दी थी की अगर वो पढ़ लिख लेगा तो शायद जमीनी लड़ाई लड़ सके मगर उसे तो अपनी जमीन वापस लेनी थी , उम्र का ख्याल नहीं था.

खैर सुरजू ने सुबह की दिनचर्या ख़तम कर के माँ की बनाई चाय पी और रोटी के बीच में एक आम के अचार का टुकडा दबाकर कर अपने झोले में कॉपी किताब के साथ रख कर साइकिल के पहियों की गति बढाता गया, पहली मंजिल कोर्ट थी. वकील से गुजारिश के बाद उसकी सुनवाई दूसरे नंबर पर थी...चाचा ने इस सुनवाई की तारीख जानबूझकर आज के दिन ही रखवाई थी . क्योंकि आज उसका बोर्ड का इम्तिहान था.
खैर कटघरे में खडा हुआ जज के सामने, कपडे से झांकती गरीबी, जेब तार तार थी, कॉलर फटा था, और जज से नजरें मिली तो आँखों से आंसू झर-झर बहने लगे..इंसानियत के नाते जज ने पूछा बेटा रो क्यों रहे हो, और सुरजू खुद को रोक नहीं सका , फफक फफक कर कहने लगा जज साब आज मेरा इम्तिहान है, और मैं यहाँ ..आगे नहीं बोल पाया, जज भी द्रवित हो गए और कहा बेटा पहले जाकर अपना इम्तिहान दो , तुम्हारे इम्तिहान के बाद ही अगली सुनवाई होगी,,,जाओ बेटा पहले अपनी परीक्षा दो...सुरजू ने सर झुका कर प्रणाम किया और कोर्ट से तेज क़दमों से निकल गया.,,,.
परिणाम ? उसे अपना अधिकार आखिर मिल ही गया ..ईश्वर ने जज जी को कहा होगा और जज सर ने मुझे मेरी जमीन दिलवा दी - अधिकार ...सत्य की राह पर चलो मिलेगा,,

Views: 693

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by SUMAN MISHRA on December 19, 2012 at 10:01am

shukriya pandey ji

Comment by Shubhranshu Pandey on December 18, 2012 at 6:48pm

प्रस्तुत चित्र के आस पास एक कथा गुथने की कोशिश............

अच्छा प्रयास.......सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे रचे हैं। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Sushil Sarna posted blog posts
Sunday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 167 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है ।इस बार का…See More
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service