For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

इंतज़ार........
हम आज भी तेरे जाने के बाद, तेरे कदमो के निशाँ पे सर रख के सजदा करते हैं I
जो आँख तेरे आने पे झपकना भूल जाती थी, और एकटक निहारा करती थी तुम्हें
वही आँखें अब तेरे कदमों की छाप पर टिकी इंतज़ार करती हैं,
कि कब ये निशाँ वापस मेरी ओर लौट कर आयेंगे....
कान हर पल तेरी आहात को सुनने के लिए बेताब रहते हैं,
दिल-ओ-दिमाग हर वक़्त हर वक़्त तेरे ख़यालों में गुम सा रहता है,
दिल हर घडी बेचैन सा और हर धड़कन तुझसे मिलने को बेकरार सी रहती है 
ये आँखें तब भी नहीं झपकती थीं, ये आँखें आज भी नहीं झपकती हैं....
ये वही आंखें हैं जो हर पल तेरे ख़ाब देखा करती थीं  
पक्लों के गिरने उठने पर हर बार एक नया ख़ाब सजाया करती थीं  i
वही आँखें आज जब झपकती हैं, तो अपने कोरों से कुछ बूंदें
मेरे गालों पे ढलका जाती हैं...........
उन बूंदों के गर्म एहसास से अचानक, फिर मेरी आँखें झपकना भूल जाती हैं
और टिक जाती हैं तुम्हारी क़दमों कि छाप पर इस इंतज़ार में
कि आज नहीं तो कल ये क़दमों के निशाँ मेरी ओर ज़रूर वापस लौट कर आयेंगे.....
हम आज भी तेरे जाने के बाद तेरे कदमों पे सर रख के सजदा करते हैं i
                                                                                                            मोनिका जैन "डौली"
 


Views: 364

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by UMASHANKER MISHRA on June 11, 2012 at 11:30pm

गम से भरी रचना ......

आज नहीं तो कल ये क़दमों के निशाँ मेरी ओर ज़रूर वापस लौट कर आयेंगे.....
हम आज भी तेरे जाने के बाद तेरे कदमों पे सर रख के सजदा करते हैं i

प्यार की भक्ति की चरम सीमा..... बहुत सुन्दर रचना

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 11, 2012 at 10:30am

तुम पुकार लो  , तुम्हारा इन्तजार है 

कितना सुन्दर सलोना इजहार है 

थक गयी आँखे उनके इन्तजार में 

न सूखे अश्क न पलकें थमी 

कितना अनोखा दिलवर का प्यार है 

आदरणीय मोनिका जी, सादर , बधाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
2 hours ago
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
8 hours ago
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"शेर क्रमांक 2 में 'जो बह्र ए ग़म में छोड़ गया' और 'याद आ गया' को स्वतंत्र…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"मुशायरा समाप्त होने को है। मुशायरे में भाग लेने वाले सभी सदस्यों के प्रति हार्दिक आभार। आपकी…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor updated their profile
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई जयहिन्द जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है और गुणीजनो के सुझाव से यह निखर गयी है। हार्दिक…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई विकास जी बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है।गुणीजनो के सुझाव से यह और निखर गयी है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। मार्गदर्शन के लिए आभार।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेन्द्र कुमार जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। समाँ वास्तव में काफिया में उचित नही…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service