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आँखों में बसे हो तुम...

आँखों में बसे हो तुम...

प्रीतम मेरी प्रीति चुरा के॥

तुम बता दियो हो मै तेरा हूँ

सपनो में मेरे के

जब मिलते हो तुम मुझसे

खिल जाती है कलियाँ

जब चलती हवा मस्तानी

हिलने लगती है बलिया

तुम मीत बने हो मेरे

कहती हूँ मै गा गा के

आँखों में बसे हो तुम...प्रीतम मेरी प्रीति चुरा के॥

खुसिया हंसने लगती है

स्पर्श जब करते तुम हो

बाहों में तुम्हे लपेट लू

अकेले जब मिलते हो

तुम मेरे हो जीवन साथी

मै धन्य हुयी तुम्हे पाके

आँखों में बसे हो तुम...प्रीतम मेरी प्रीति चुरा के॥

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Comment by shambhu nath on December 11, 2011 at 9:45am

shriman ji hamari kavita published  karne ke liye shukriya.mai open book online ka abhari hoo..

dhanyavaad.

 

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