For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जिंदगी एक खुली किताब !!!

जिंदगी एक खुली किताब है,
फिर भी ये किताब खुद के पास हो,
बेहतर
जो जाने कीमत इसकी,
जो जाने इज्जत इसकी,
जो इसके पन्नो का मोल समझे,
ये किताब हो तो उसके पास हो,

जो सर से लगाये यू ,
सरस्वती का वास हो,
भला हो या बुरा हो ,
अपना समझ कर जो माफ़ करे,
कुछ सीख नयी हो सीखलाने की,
दे वो सीख मृदुल मुस्कान से ,
जिंदगी की वो खुली किताब,
हो तो उसके पास हो |

Views: 814

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by PREETAM TIWARY(PREET) on September 4, 2010 at 6:40am
नूतन जी नमस्कार....

सबसे पहले तो मैं आपके पहले ब्लॉग के लिए बधाई देता हूँ....बहुत ही बढ़िया रचना है नूतन जी...
आशा ही नहीं पूर्ण विस्वास है की आगे भी आपकी रचनाएँ पढने को मिलती रहेंगी..
Comment by Dr Nutan on September 1, 2010 at 6:24pm
जगदीश तपिश जी ..शुक्रिया आपका
पर मैं आपकी बात पर अपनी बात अपने लफ़ज़ो मेी यू कहूँगी
जालिम होता जमाना तो भरोसा करता. जो होता दिल मे तो खुल कर ब्यान करता..
ये दुनिया तहज़ीब से चलती है अब मन में हो पीर तो भी जुबां से मिश्री घोलता.( नूतन )..तो ऐसे में आज के ज़माने में भरोसा क्या कीजियेगा ये तो वक़्त की दौलत है जो सनै सनै आती है .. सादर शुक्रिया .
Comment by Dr Nutan on September 1, 2010 at 5:55pm
To dear Jaya ji..... aapne sahi kaha .. ki kitabe sahi maayne me dost hai.......par mai kabhi hanshi majaak me bhi keh deti hoo ki ..I am not a book worm... aapne bahut sundar comment kiya... sadar.. dhanyvaad

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on September 1, 2010 at 11:29am
डॉ नूतन जी,

सब से पहले तो मैं oBo परिवार में आपका हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ और आशा करता हूँ की आपका साथ हमेशा हमें मिलता रहेगा ! मुझे बहुत ख़ुशी है कि अब आप भी हमारी खुली किताब का एक बाब हो गए हैं !

आपकी कविता दिल को छू गई, आपने बिलकुल सही कहा की ज़िंदगी भी किसी खुली किताब ही की तरह है लेकिन इसको हरेक के सामने खोलकर नहीं रखा जा सकता ! इस सारगर्भित काव्यकृति के लिए दिल से साधुवाद देता हूँ ! एक शेअर आपके शेअर की नज़र :

//आप आए जो इस गुलशन में, ये लगा हमको
जैसे तार्रुफ़ किसी ने करा दिया हो बहार से !//

सादर
योगराज प्रभाकर
प्रधान सम्पादक
Comment by jagdishtapish on September 1, 2010 at 9:46am
manniya jaya ji aapne sahi farmaya --kitab hi to hamari sabse achchi dost --
naye mitra yaa nai kitabon par jara mushkil se hi bharosa kar pata hai har koi --isliye hamara manna hai purani kitaben aur purane dost hi vafadar hote hain
nai kitabon aur naye doston ko to parkhne ke bad hi bharosa kiya ja sakta hai ya un par koi ray jahir ki ja sakti hai
Comment by Jaya Sharma on September 1, 2010 at 6:56am
kitab hi to hai hamari sabse achchhi dost!
Badhiya!
Comment by Pankaj Trivedi on August 31, 2010 at 11:29pm
बहुत सुंदर.... आगे बढ़ो... स्वागत...
Comment by Dr Nutan on August 31, 2010 at 11:27pm
पहला दिन खुली किताब में
मित्रो के प्रोत्साहन से और एडमिनिस्ट्रेटर जी द्वारा मार्ग दर्शन से मैं बहुत प्रसन्न हूँ .. शायद कुछ लिखने योग्य बनूँ.. .. आप सभी का तहे दिल शुक्रिया ..
" यूं तो हुवा यहाँ आना पहली पहली बार है
पर लगता नहीं कभी ना गुजरे हो इन कुंच - ए - दीदार से.."
नूतन .. २३ :०९ .. ३१ - ०८ - २०१०
Comment by jagdishtapish on August 31, 2010 at 10:23pm
manniyaa dr nutan ji aapne hamen is yogya samjha
hradya se aabhari hain ham aapke bahut umda rachna ---zindagi ek khuli kitab hai ---there is no dout ---lekin ise apne pass rakhana chahiye --jo jane iski kimat --aur bhi achche khayal hai --apko bahut bahut badhai itni achchi rachna ke liye ---saadar ---
Comment by Pankaj Trivedi on August 31, 2010 at 10:13pm
डॉ. नूतनजी,
आपकी पहली पोस्ट - कविता - ज़िंदगी खुली किताब है... बहुत ही सुन्दर भावाभिव्यक्ति है | कुछ सीखने की बात और मृदुल मुस्कान के साथ स्वागत है... धन्यवाद |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
1 hour ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
9 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
9 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
10 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
11 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
13 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
yesterday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
yesterday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service