For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तमाम उम्र किया मैंने इन्तिज़ार तेरा (१२१ )

(1212 1122 1212 22 /112 )
तमाम उम्र किया मैंने इन्तिज़ार तेरा
नहीं रहा कभी मुमकिन भुलाना प्यार तेरा
**
न तेरी आहटों का सिलसिला रुका था कभी
हवाएँ करती रहीं ज़िक्र बार बार तेरा
**
सजा रखीं हैं करीने से दिल में यादें तेरी
कि दिल की धड़कनों पे अब भी इख़्तियार तेरा
**
अगरचे तुझ से मुलाक़ात अब है ना-मुमकिन
मगर है ख़्वाब-ओ-तसव्वुर में तो शुमार तेरा
**
ख़िज़ाँ की उम्र है लेकिन सुरूर क़ायम है
कभी उतर न सका जो चढ़ा ख़ुमार तेरा
**
दिए हैं प्यार के जितने भी पल मुझे तूने
जनम जनम के लिए हूँ मैं कर्ज़दार तेरा
**
न तुझ से मिलने का अब है बचा ठिकाना कोई
बहा के ले गया दरिया सनम मज़ार तेरा
**
जहाँ भी है तू मिले रूह को सुकूँ तेरी
दुआगो दिल से है आशिक़ ये बेक़रार तेरा
**
जनम तू ले तो सही एक बार फिर से कहीं
क़सम से ढूंढ ही लेगा 'तुरंत ' यार तेरा
**
गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' बीकानेरी |
मौलिक व अप्रकाशित

Views: 600

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on September 2, 2020 at 10:38pm

Dimple Sharma जी , उत्साहवर्धन के लिए बहुत बहुत शुक्रिया 

Comment by Dimple Sharma on September 2, 2020 at 3:59pm

आदरणीय गिरधारी सिंह गहलोत'तुरंत'जी नमस्ते वाह बहुत ख़ूब आदरणीय, खुबसूरत ग़ज़ल पर बधाई स्वीकार करें आदरणीय, पांचवा शेर बहुत कमाल हुआ है आदरणीय उस्ताद मोहतरम और आदरणीय अमीरुद्दीन अमीर साहब की इस्लाह अनुसार तो शेर और भी निखर जाएगा ।

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on August 31, 2020 at 7:03pm

आदरणीय Samar kabeer साहेब आदाब , आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए अत्यंत आभार | 

Comment by Samar kabeer on August 31, 2020 at 6:26pm

जनाब गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।

'हयात पर है अभी तक भी इख़्तियार तेरा'

इस मिसरे में 'अभी तक' के साथ 'भी' का प्रयोग उचित नहीं, ग़ौर करें,और मिसरा बदलने का प्रयास करें ।

'ख़िज़ाँ की उम्र है लेकिन सुरूर क़ायम है'

इस मिसरे पर जनाब 'अमीर' जी से सहमत हूँ, उचित लगे तो इस मिसरे को यूँ कह सकते हैं:-

'ख़िज़ां रसीद: हैं लेकिन सुरूर क़ाइम है'

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on August 30, 2020 at 11:30pm

आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' साहेब , मुआफ़ी चाहता हूँ , आपकी बात को ठीक से अब समझा , मेरा ध्यान तू /तेरा की तरफ चला गया था /मुझे लगा आप शतुरगुरबा की और इशारा कर रहे हैं | समर कबीर साहेब की समीक्षा की मुझे भी प्रतीक्षा है ,लेकिन आपकी पुल्लिंग वाली बात से सहमत हूँ , आपका आशय मिलती की झगह मिलता करने से है ये बात अब समझ आई | हार्दिक आभार | 

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on August 30, 2020 at 10:50pm

जनाब गिरधारी सिंह गहलोत जी, मैंने आप, तुम, तू को लेकर तो कोई टिप्पणी नहीं की थी जिस पर आपने बे वज्ह ही अपनी काफ़ी क़ुव्वत ज़ाया कर दी, सिर्फ इतना ही अर्ज़ किया था कि : "जनाब शाइरी में महबूब को पुल्लिंग लिखा जाता है।" और आपको बताना चाहूँगा कि ये बात मैने उस्ताद-ए-मुहतरम जनाब समर कबीर साहिब से सीखी है।

दूसरी बात आप फरमाते हैं कि "जब उम्र-ए-अदम , उम्र-ए-बहार का प्रयोग हो सकता है तो उम्रे -ख़िज़ाँ भी हो सकता है |

बुज़ुर्गवार बेशक सहीह फ़रमाया उम्र-ए-ख़िज़ाँ ही क्यों उम्र-ए-लम्हा भी होता है मगर जैसा आपका कहना है कि :

ख़िज़ाँ की उम्र =बुढ़ापा (श्लेष का प्रयोग है ) मैं सहमत नहीं हूँ, ख़िज़ाँ की उम्र को बुढ़ापे के मआनी में नहीं ले सकते। बाक़़ी अगर उस्ताद मुहतरम जनाब समर कबीर साहिब इस चर्चा को देखें तो उन से दरख़्वास्त है कि अगर वक़्त हो तो अपनी क़ीमती राय से रोशनास फ़रमाएं।  सादर।

 

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on August 30, 2020 at 8:36pm

आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर'  साहेब , आपकी त्वरित प्रतिक्रिया से दिल बाग़ बाग़ है , सादर नमन | आपकी समीक्षात्मक टिप्पणियां सदैव कुछ न कुछ सीखने को प्रोत्साहित करती हैं | जनाब शाइरी में महबूब को पुल्लिंग लिखा ही जाये ज़रूरी नहीं है | ये मतले में आपने क्या सम्बोधन दिया इस पर निर्भर है | दूसरा जहाँ रदीफ़ तेरा का इस्तेमाल है तो यहाँ तो तुम का भी सम्बोधन नहीं दे सकते | तू और तेरा /तुझे  ही करना पडेगा | आप तो जानते हैं "तू " महबूब से अत्यधिक अंतरंगता को प्रदर्शित करता है | ऐसा कोई नियम नहीं है कि आप तू और तेरा का प्रयोग शाइरी में कर ही नहीं सकते | ख़ुदा या रब के साथ भी जब तू प्रयोग हो सकता है तो महबूब के साथ क्यों नहीं | यह केवल भ्रम फैलाया हुआ है कि तू का प्रयोग हो नहीं सकता | 

निकलना ख़ुल्द से आदम का सुनते आये थे लेकिन 

बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले --ग़ालिब (यहाँ ग़ालिब साहेब ने जानबूझकर आपके या तुम्हारे इस्तेमाल नहीं किया तेरे किया )

**

मुमकिन नहीं कि तेरी मोहब्बत की बू हो

काफ़िर अगर हज़ार बरस दिल में तू हो--दाग़ देहलवी 

**

बज़्म में जो तिरा ज़ुहूर नहीं

शम-ए-रौशन के मुँह पे नूर नहीं--मीर तकी मीर 

**

ख़िज़ाँ की उम्र =बुढ़ापा (श्लेष का प्रयोग है ) जब उम्र-ए-अदम , उम्र-ए-बहार  का प्रयोग हो सकता है तो उम्रे -ख़िज़ाँ भी हो सकता है | 

**

ये ज़रूरी भी नहीं है आदरणीय सभी शेर सभी को पसंद आये | शाइर तो अपने ख़याल लिखता है पसंद /नापसंद पाठक पर ही निर्भर है | आशिक़ उसे ढूंढ़ कर किस रूप में अपनाएगा यह बाद में देखा जाएगा पहले तो आप उसके इश्क़ की कशिश देखिये | 

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on August 30, 2020 at 6:43pm

आदरणीय गिरधारी सिंह गहलोत जी सादर अभिवादन, अच्छी ग़ज़ल हुई है दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ, पहला, दूसरा, तीसरा, छटा और आठवाँ शे'र ज़बरदस्त है।

"हुआ है क्या जो हक़ीक़त में तू नहीं मिलती"   जनाब शाइरी में महबूब को पुल्लिंग लिखा जाता है।

"ख़िज़ाँ की उम्र है लेकिन सुरूर क़ायम है"      जनाब ख़िज़ाँ की उम्र नहीं, हवा, मौसम या दौर वग़ैरह होता है।

"जनम तू ले तो सही एक बार फिर से कहीं

  क़सम से ढूंढ ही लेगा 'तुरंत ' यार तेरा"       जनाब जहांँ तक मक़्ते के मफ़हूम को मैं समझ पाया हूँ पसंद नहीं आया है,

अगर महबूब के पुनर्जन्म लेने पर वर्तमान जीवन में आशिक़ उसे ढूंढ भी लेगा तो किस रूप में अपनाएगा?  

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" साहिब आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
7 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय निलेश शेवगाँवकर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद, इस्लाह और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
7 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी आदाब,  ग़ज़ल पर आपकी आमद बाइस-ए-शरफ़ है और आपकी तारीफें वो ए'ज़ाज़…"
7 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज भाईजी के प्रधान-सम्पादकत्व में अपेक्षानुरूप विवेकशील दृढ़ता के साथ उक्त जुगुप्साकारी…"
9 hours ago
Ashok Kumar Raktale commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"   आदरणीय सुशील सरना जी सादर, लक्ष्य विषय लेकर सुन्दर दोहावली रची है आपने. हार्दिक बधाई…"
9 hours ago

प्रधान संपादक
योगराज प्रभाकर replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"गत दो दिनों से तरही मुशायरे में उत्पन्न हुई दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति की जानकारी मुझे प्राप्त हो रही…"
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"मोहतरम समर कबीर साहब आदाब,चूंकि आपने नाम लेकर कहा इसलिए कमेंट कर रहा हूँ।आपका हमेशा से मैं एहतराम…"
10 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"सौरभ पाण्डेय, इस गरिमामय मंच का प्रतिरूप / प्रतिनिधि किसी स्वप्न में भी नहीं हो सकता, आदरणीय नीलेश…"
10 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय समर सर,वैसे तो आपने उत्तर आ. सौरब सर की पोस्ट पर दिया है जिस पर मुझ जैसे किसी भी व्यक्ति को…"
11 hours ago
Samar kabeer replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"प्रिय मंच को आदाब, Euphonic अमित जी पिछले तीन साल से मुझसे जुड़े हुए हैं और ग़ज़ल सीख रहे हैं इस बीच…"
14 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, किसी को किसी के प्रति कोई दुराग्रह नहीं है. दुराग्रह छोड़िए, दुराव तक नहीं…"
18 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"अपने आपको विकट परिस्थितियों में ढाल कर आत्म मंथन के लिए सुप्रेरित करती इस गजल के लिए जितनी बार दाद…"
19 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service