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पुरानी किताबें ....

पुरानी किताबें ........

पुरानी किताबें
कुछ भी तो नहीं
सिवाय पुरानी कब्रों के
जिनमें दफ़्न हैं
चंद सूखे गुलाब
कुछ सिसकते हुए
मुहब्बत के ख़ुश्क से हर्फ़
कुछ पुराने पीले
टुकड़े टुकड़े से
अधूरे प्रेम के
प्रेम पत्र

पुरानी किताबें
जिनमें सो गयी
जीने की आस लिए
कई आकांक्षाएं
घुटी हुई सांसें
मोटी सी ज़िल्द की
अलमारी में
कैदियों से जीते
मौन कई अफ़साने
जंज़ीरों में जकड़े
इश्क और मुहब्बत के
बीते हुए  ज़माने


पुरानी किताबें
कैद हैं जिनमें
चेहरे की झुर्रियों में
जीवन समेटे
बज़ुर्गों के
कुछ धुंधले से चेहरे
जिनकी नसीहतें
उनके साथ
पन्नों में
सो गयी

पुरानी किताबें
फ्रेम में जड़े
ज़िस्मों की तरह
खामोश यादों के सिवा
शायद
कुछ भी नहीं
पन्नों में सिमटे
बीते पल
बस
बीते कल के सिवा
कुछ भी नहीं

पुरानी ही सही
मगर कैसे कह दें
इन किताबों में
कुछ भी नहीं

सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 804

Comment

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Comment by Sushil Sarna on September 28, 2016 at 8:55pm

आदरणीय शिज्जु शकूर साहिब आदाब  ... प्रस्तुति के भावों को  अपने मनोहारी शब्दों से अलंकृत करने का तहे दिल से शुक्रिया। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 28, 2016 at 4:38pm
बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना हुई है आ. सुशील सरना सर बहुत बहुत बधाई आपको

कृपया ध्यान दे...

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