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राय बहादुर : लघु कथा

“मेरे ग्रैंड फादर राय बहादुर थे” ..... उस व्यक्ति ने बुद्धिजीवियों की सभा में अकड़ के साथ यह बात कही ।   सभा के आयोजक ने भी गर्व से अपना सर ऊंचा कर लिया । वहाँ  उपस्थित लोग जो उस व्यक्ति को मिल रहे विशेष सम्मान, तवज्जो , उसके समृद्ध पहनावे एवं उसकी मंहगी गाड़ी से पहले ही नतमस्तक हो रहे थे, यह सुनकर थोड़े  और विनीत भाव दिखलाने लगे। उसे मंच पर सबसे ऊंची कुर्सी दी गयी । सब उसके साथ एक फोटो खिचवा लेना चाहते थे । महेश सभा में सबसे पीछे की कुर्सी पर उपेक्षित सा बैठा अपने मलिन कपड़ों को देख रहा था।  वह ज़ोर से चिल्ला चिल्ला कर कहना चाह रहा था  कि उसके दादा जी एक स्वतन्त्रता सेनानी थे , जिनकी सारी संपत्ति अंग्रेज़ो ने जब्त कर ली थी .... पर वह चुप रहा ....  

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Comment by Neeraj Neer on June 29, 2015 at 11:04am
पर मेरी इस कथा का कथ्य वर्तमान से सम्बंधित है आदरणीया कांता रॉय जी ..... आभार आपका आपकी टिप्पणी के लिए ..
Comment by kanta roy on June 29, 2015 at 8:42am
वाह !!!!! क्या प्रसंग खींचा है आपने यहाँ कथा में ... अद्भुत !!..... यह सत्य है कि उन दिनों जो अंग्रेजी हुकूमत की चमचागिरी करते थे उन्हे ही यह सम्मान मिलता था । जो बागी थे ... जो देशप्रेमी थे वो सदा ही त्रस्त किये जाते रहे । एक ओर अंग्रेजों द्वारा सम्मानित होना और एक स्वतंत्रता सेनानी का खाका वहीं एक ही परकोटे में .... बहुत ही सुंदर चित्रण .... बधाई आपको आदरणीय नीरज जी इस सुंदरतम रचना के लिए

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