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!!! सारांश !!!
बह्र - 2 2 2


कर्म जले।
आंख मले।।


धर्म कहां?
पाप पले।


नर्म गजल,
कण्ठ फले।


राह तेरी ,
रोज छले।


हिम्मत को,
दाद भले।


गर्म हवा,
नीम तले।


जीवन क्या?
हाड़ गले।

आफत में,
बह्र खले।


प्रीत करों,
बन पगले।


विव्हल मन,
शब्द टले।


दृषिट मिली,
सांझ ढले।


गर मुफलिस,
बात टले।

कण्टक पथ,
सत्य फले।

दुष्ट यहां,
हाथ मले।


के0पी0सत्यम / मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by गिरिराज भंडारी on October 10, 2013 at 4:42pm

आदरणीय गागर मे सागर के लिये हार्दिक बधाई !!!! वाह वाह !!!!

Comment by annapurna bajpai on October 10, 2013 at 1:34pm

अदरणीय केवल भाई जी छोटी बह्र मे रची आपकी गजल मन मोह गई । आपको बहुत बधाई । 

Comment by विजय मिश्र on October 10, 2013 at 1:23pm
2/2 = 100/100 . बहुत ही सुंदर और प्रयोगात्मक शैली का आनंद भी . बधाई केवलजी
Comment by Sushil.Joshi on October 10, 2013 at 6:02am

सुंदर भावों से सुसज्जित गज़ल... बधाई हो आदरणीय केवल भाई...

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