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ग़ज़ल : बँधी भैंसें तबेले में

ग़ज़ल
बह्र : हज़ज़ मुरब्बा सालिम
1222 , 1222 ,

बँधी भैंसें तबेले में,
करें बातें अकेले में,

अजब इन्सान है देखो,

फँसा रहता झमेले में,

मिले जो इनमें कड़वाहट,
नहीं मिलती करेले में,

हुनर जो लेरुओं में है,
नहीं इंसा गदेले में,

भले हम जानवर होकर,
यहाँ आदम के मेले में,

गुरु तो हैं गुरु लेकिन,
भरा है ज्ञान चेले में..

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by अरुन 'अनन्त' on October 10, 2013 at 3:17pm

हार्दिक आभार आदरणीय गिरिराज सर स्नेह बना रहे

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 10, 2013 at 3:17pm

हाहाहा बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय श्री बागी भ्राताश्री आशीष एवं स्नेह बना रहे

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 10, 2013 at 3:16pm

हार्दिक आभार आदरणीय कपिश चन्द्र श्रीवास्तव जी

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 10, 2013 at 3:15pm

हार्दिक आभार आदरणीय राज बुन्देली जी स्नेह बना रहे

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 10, 2013 at 3:15pm

हार्दिक आभार आदरणीय शिज्जू जी स्नेह बना रहे

Comment by Sachin Dev on October 10, 2013 at 1:33pm

बहुत खूब भाई अरुण जी....
बंधी भैंस तबेले मैं 
करें बाते अकेले मैं 
वो बात डालर मैं कहाँ 
जो बात है धेले मैं 

हार्दिक बधाई स्वीकारें ......

Comment by Saarthi Baidyanath on October 10, 2013 at 10:42am
बँधी भैंसें तबेले में,
करें बातें अकेले में.... बहुत खूब अरुन साहिब ..! अब ये दो मिसरे ही इतना कुछ कह जाते हैं कि क्या कहें ...काफिया भी असर छोड़ता है !..वाह जी वाह :)
Comment by Abhinav Arun on October 10, 2013 at 6:27am

अप्रतिम ..बढ़िया ...सशक्त प्रयास हुआ है ..इस ताजगी के लिए बहुत बधाई आ. अरुण जी !!

Comment by वेदिका on October 10, 2013 at 12:45am

अजब इन्सान है देखो, फँसा रहता झमेले में,

आदरणीया दीदी की चुहल के बाद आपकी इतनी प्यारी हँसोड़ गज़ल !

लगता है हँसने मुस्कराने का मौसम आ गया !!

बधाई :-) आ0 अरुण जी! 

Comment by annapurna bajpai on October 9, 2013 at 10:49pm

आ0 अरुण जी बहुत ही खूबसूरत गजल हुई है  बधाई । 

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