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ग़ज़ल - मधुर सी चांदनी है , मिला महुआ चुआ सा !

ग़ज़ल -

किसी ने यूँ  छुआ सा ,

मुझे कुछ कुछ हुआ सा |

 

मैं हर शब् हारता हूँ ,

ये जीवन है जुआ सा |

 

कसावट का  भरम था ,

नरम थी  वो रुआ सा |

 

नज़र खामोश उसकी ,

असर उसका दुआ सा |

 

कहीं कुछ टीसता है ,

कि धंसता है सुआ सा |

 

मैं हल खींचूँ अकेले ,

ले काँधे पर जुआ सा |

 

मधुर सी चांदनी है ,

मिला महुआ चुआ सा |

 

ये माँ का याद आना ,

लगे  मीठा पुआ सा |

 

              -अभिनव अरुण 

      {पुरानी डायरी से १८०८२०१३}

* सर्वथा मौलिक एवं अप्रकाशित - अरुण 

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Comment by गिरिराज भंडारी on August 19, 2013 at 3:39pm

अभिनव भाई , छोटी बहर मे , कम शब्दों मे बढ़िया गज़ल हुई !!!! बधाई !!!!

कृपया ध्यान दे...

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