For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

चलिये शाश्वत गंगा की खोज करें- द्वितीय खंड (4)

गंगा, (ज्ञान गंगा व जल  गंगा) दोनों ही अपने शाश्वत सुन्दरतम मूल  स्वभाव से दूर पर्दुषित  व  व्यथित,  हमारी काव्य कथा  नायक 'ज्ञानी' से संवादरत हैं। 

 

अब यह सर्वविदित है कि मनुष्य की तमाम विसंगतियों, मुसीबतों, परेशानियों   का कारण उस का ओछा ज्ञान है जिसे वह अपनी तरक्की का प्रयाय मान रहा है. इसी ओछे ज्ञान से मानव को निकालना और सही व ज्ञानोचित अनुभूति का संप्रेष्ण करना अब ज्ञानि का लक्ष्य है. इस के लिये उस ने मानवीय अधिवासों में जा कर प्रवचन देने का मन बना लिया है.

प्रस्तुत श्रंखला उन्हीं प्रवचनों का काव्य रूपांत्र है....

 

ज्ञानी का दूसरा प्रवचन (ज़ारी  )

(लड़ी जोड़ने के लिए पिछला ब्लॉग पढ़ें....) 

तुम्हारे ये तरू खींच लायेंगे मुझे
फिर बरसूंगी बरखा बन कर
फिर बहूंगी गंगा बन कर
पहाडों में मैदानों में...'

शिव हंसने लगे
‘पर चेता रहा हूं गंगे फिर न कहना.
शिव का भारी स्वर:
तुम्हें हर्ष न होगा बहने में मैदानों में
यह हिमालय ही घर है तुम्हारा
वहां पार मैदानों में
तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा है
हजारों टन मानव मल
मानवीय आबादियों से बहता हुआ


जल व मल प्रबंधन में मानव अभी भी स्हसरों वर्ष जैसा ही है
जल से मल निकालने के लिए मानव अभी तक
प्रकृति की चत्रुता पर ही निर्भर है
जल व मल अभी भी साथ साथ बहते हैं
साथ साथ उपयुक्त होते हैं
मानव द्वारा’


‘हत्!’ गंगा बोंलीं
‘कैसी बात करते हो! शिव!
क्या मानव ऐसा है
क्या वह कीटों से भी निमनतर है
दुनियां भर के कीट वनस्पति जगत से अपनी इच्छा का एक द्रव्य चुन लेते हैं
उसे ले लेते हैं और शेष प्रकृति का नुकसान नहीं करते'


‘और गंगे,’ शिव का स्वर
‘उस चक्षुयुक्त अति ज्ञानि मानव के लिए
अभी भी जैविक प्राणि वनचर परिंदे व कीट हैं
या जलचरों में मीन या घडियाल
जल में रहते स्हसरों सूक्ष्म प्राणि नहीं
वे उस का ग्रास बनते हैं
बाद में वह उन का

पुनः कहता हूं
उस ज्ञानि विज्ञानि मानव के लिए
भौतिक प्रकृति ही सब कुछ है
रासायण है प्रकृति में तो प्रकृति की सरदर्दी
रासायणक मल जल व पृथ्वि में मिलाना उस का स्वभाव है
वहां किनारें पर न जाने कितने रासायणक गृह हैं
वह सारा रासायणक मल
तुम्हारे पानियों में घुल जाने को तैयार है’


गंगा जी डर गईं
‘क्या कहते हो शिव भाई
मैं पवित्र  जल से मल का नाला बन जाउंगी
मैं तो प्रसन्न थी स्वर्ग में बादलों में
मैं तो आना न चाहती थी धरती पर
आह! अब मैं कहा जाउं’


गंगा जी गहन पीडा में उूब गई.
ज्ञानी के माथे की रेखायें खिंच गईं.
उस की वाणि गले में रूंध गई.
वह आगे कुछ बोल न सका....

(इति द्वितीय खंड) 

Views: 881

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr. Swaran J. Omcawr on April 2, 2013 at 8:22pm

आप का कहना अति उचित है माननीय  coontee mukerji  जी। शायद यही वजह है की हम प्रकृति की हर सौगात को निश्चित मान बैठे हैं। यह हमारा आलस्य है जो हम प्रकृति से ऐसा अन्याय कर रहे हैं।

Comment by Dr. Swaran J. Omcawr on April 2, 2013 at 8:12pm

धन्यवाद माननीय  rajesh kumari जी आप ने उचित शब्दों में रचना को सराहा। कृपया सहयोग बनाये रखें। आने वाले अंकों में हम ज्ञान गंगा के प्रदुषण के बात भी करेंगे।

Comment by Dr. Swaran J. Omcawr on April 2, 2013 at 8:07pm

धन्यवाद राम शिरोमणि जी 
 आप के विचारों का सम्मान  करता हूँ। कृपया ऐसा सहयोग बनाये रखें। मैं तो प्रयतनरत हूँ कि रचना दिलचस्प व बहु -आयामी हो  और चर्चा भी। हृदय से बयान कर रहा हूँ लेकिन आप के दिल से बयाँ की गयी टिपणी का सम्मान करता हूँ।
Comment by coontee mukerji on April 2, 2013 at 7:50pm

ओमकार जी नमास्कार , जिस गंगा की हम इतनी श्रद्धा से पूजा करते है जिसकी सौंदर्य का वर्णन कर हम अघाते नहीं ,अंत में उसीकी

दुर्दशा टुकुर  टुकुर आँखों से देखते रहते है. मैं कर्म पर विश्वास करती  हूँ. गुस्सा तो बहूत आता है लेकिन इसका ज़िम्मेदार हम

तथाकथित बड़े लोग है. इसकी शुरूआत हमारे घ्रर से होता है अगर दो दिन हमारे नौकर काम पर नहीं आता है तो घर में कूड़ा पड़ा

रहता है.अगर हमारे घर का यह हाल हैं तो बेचारी गंगा को कौन पूछे  . हम सिर्फ़ लेक्च्रर दे सकते हैं  . सफ़ाई करना क्या हमारी

शान के खिलाफ़ नहीं है .सिर्फ़ एक दिन जितने लोगा गंगा के दर्शन करने जाते हैं अगर हाथ जोड़ने के बदले गंगा की सफ़ाई कर

दे तो दोनों का कल्यान हो जाए.

Comment by ram shiromani pathak on April 2, 2013 at 1:49pm
गंगा बचाओ अभियान की और जागरूक करता हुआ ग्यानी का प्रवचन बहुत  अच्छा लगा बधाई साझा करने के लिए 

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 2, 2013 at 11:41am
आँखे खोलता हुआ गंगा बचाओ अभियान की और जागरूक करता हुआ ग्यानी का प्रवचन बहुत  अच्छा लगा बधाई साझा करने के लिए 

 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
5 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"सहर्ष सदर अभिवादन "
12 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, पर्यावरण विषय पर सुंदर सारगर्भित ग़ज़ल के लिए बधाई।"
14 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय सुरेश कुमार जी, प्रदत्त विषय पर सुंदर सारगर्भित कुण्डलिया छंद के लिए बहुत बहुत बधाई।"
15 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय मिथलेश जी, सुंदर सारगर्भित रचना के लिए बहुत बहुत बधाई।"
15 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
15 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर कुंडली छंद हुए हैं हार्दिक बधाई।"
20 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
" "पर्यावरण" (दोहा सप्तक) ऐसे नर हैं मूढ़ जो, रहे पेड़ को काट। प्राण वायु अनमोल है,…"
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। पर्यावरण पर मानव अत्याचारों को उकेरती बेहतरीन रचना हुई है। हार्दिक…"
22 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"पर्यावरण पर छंद मुक्त रचना। पेड़ काट करकंकरीट के गगनचुंबीमहल बना करपर्यावरण हमने ही बिगाड़ा हैदोष…"
23 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"तंज यूं आपने धूप पर कस दिए ये धधकती हवा के नए काफिए  ये कभी पुरसुकूं बैठकर सोचिए क्या किया इस…"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service