For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

शब्-ए-फुरकत है उजालों की जरुरत क्या है

शब्-ए-फुरकत है उजालों की जरुरत क्या है
पास तुम हो तो इशारों की जरुरत क्या है

तुम बसे हो जो बने नूर-ए-खुदा आँखों में
इन निगाहों को नजारों की जरुरत क्या है

दिल लुटे सबके नज़र उसपे पड़ी जैसे ही
बेचने दिल ये बाजारों की जरुरत क्या है

छोड़ के तुम जो चले मिलने लगे सब हमसे
हिज्र के गम में विसालों की जरुरत क्या है

फूल खिलते हैं बहारों में हरी साखों पर
खार खिलने को बहारों की जरुरत क्या है

साथ जो छोड़ा मेरा तुमने सरे मंजिल ही
तब तेरे ख्वाबों ख्यालों की जरुरत क्या है

बेबफा था वो तुझे देता रहा धोखा ही
"दीप" तुमको यूँ मलालों की जरुरत क्या है

Views: 1058

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nilansh on June 15, 2012 at 8:07pm

तुम बसे हो जो बने नूर-ए-खुदा आँखों में 
इन निगाहों को नजारों की जरुरत क्या है

 

bahut hi sunder ghazal aadarniya bhai sandeep ji

bahut badhaai

Comment by yogesh shivhare on June 15, 2012 at 6:34pm

बहुत सुन्दर ग़ज़ल आदरणीय संदीप जी ..बधाई

छोड़ के तुम जो चले मिलने लगे सब हमसे
हिज्र के गम में विसालों की जरुरत क्या है
बेहद खूबसूरत अल्फाजों से सजी उम्दा रचना

Comment by Albela Khatri on June 15, 2012 at 11:49am

वाह वाह संदीप कुमार जी.......
बहुत अच्छी  ग़ज़ल..........

तुम बसे हो जो बने नूर-ए-खुदा आँखों में
इन निगाहों को नजारों की जरुरत क्या है

___बधाई !

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 15, 2012 at 11:05am

आदरणीय संदीप जी , सादर 

अब तक की बेहतरीन गजल. बधाई.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
1 hour ago
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"शेर क्रमांक 2 में 'जो बह्र ए ग़म में छोड़ गया' और 'याद आ गया' को स्वतंत्र…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"मुशायरा समाप्त होने को है। मुशायरे में भाग लेने वाले सभी सदस्यों के प्रति हार्दिक आभार। आपकी…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor updated their profile
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई जयहिन्द जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है और गुणीजनो के सुझाव से यह निखर गयी है। हार्दिक…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई विकास जी बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है।गुणीजनो के सुझाव से यह और निखर गयी है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। मार्गदर्शन के लिए आभार।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेन्द्र कुमार जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। समाँ वास्तव में काफिया में उचित नही…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, हार्दिक धन्यवाद।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service