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Somesh kumar's Blog – November 2014 Archive (12)

बस इतना मेरा जीवन

बस इतना मेरा जीवन

मैं बच्चों में बच्चे मुझमें

बस इतना मेरा जीवन

 

वो ही मेरा सोना-चाँदी

उनसे मेरा तन-मन-धन

आने वाले कल की सूरत

जिनकी रेखा खींच रहा

कल पक के धन्य-धान करेंगी

मैं वो फसलें सींच रहा

मैं बच्चों में बच्चे मुझमें

बस इतना मेरा जीवन

 

सुबह मिल अभिवादन करते

मन हो जाता बहुत प्रसन्न

होड़ लगाए बढ़-चढ़ आते

सर बजा दें टन-टन-टन |

मैं बच्चों में बच्चे मुझमें

बस इतना मेरा…

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Added by somesh kumar on November 30, 2014 at 11:50pm — 7 Comments

सहेजना

सहेजना  

बिखराव में समझ आता है

सहेजे का मोल

मनचाही चीज़ जब

आसानी से नहीं मिलती तो

याद आती है माँ/पत्नी//बहन  

सुबह-सुबह खाना पकाती

सेकेण्ड-सुई से रेस लगाती

हर पुकार पे प्रकट हो जाती

मुराद पूर्ण कर फिर जाती

कितना आसान बना देती है

ज़िन्दगी को,माँ/पत्नी/बहन  

सहेजना एक कौशल है

पर रोज़-रोज़ एक जैसे

को सहेजना बिना आपा खोये

समर्पण है प्यार है त्याग है

औरतें रोज़ इन्हें सहेजती हैं

और एक…

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Added by somesh kumar on November 30, 2014 at 9:33am — 9 Comments

मरघट का जिन्न (कहानी)

दो मित्र थे, |शेरबहादुर और श्रवणकुमार | नाम के अनुसार शेरबहादुर बहुत वीर और निर्भीक थे ,अन्धविश्वास से अछूते ,बिना विश्लेषण किसी घटना पर यकीन नहीं करते |दुसरे शब्दों में पुरे जासूस थे |बाल की खाल निकालना और अपनी और दूसरों की फजीहत करना उनका शगल था |श्रवणकुमार नाम के अनुसार सुनने की विशेष योग्यता रखते थे |एक तरह से पत्रकार थे ,मजाल है गाँव की कोई कानाफूसी उनके कानों से गुजरे बिना आगे बढ़ जाए |तीन में तेरह जोड़ना उनकी आदत थी इसलिए नारदमुनि का उपनाम उन्हें मिला हुआ था |पक्के अन्धविश्वासी और डरपोक…

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Added by somesh kumar on November 27, 2014 at 10:00am — 7 Comments

तुम मेरे कौन हो

तुम मेरे कौन हो?

तुम मेरे कौन हो ?

उषा सिंदूरी या चाँदनी रात

उषा जिससे ज़िन्दगी का अन्धेरा जाता है

जिसके स्पर्श से जीवन लहराता है

खिल उठते हैं जिसके दर्शन से बेल-बूटे…

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Added by somesh kumar on November 25, 2014 at 7:30pm — 10 Comments

खुला इश्तिहार

आज ‘नियति’ व ‘आदित्य ‘ आमने-सामने बैठे थे | सेमिनार के बाद यह उनकी पहली मुलाकात थी |और शायद .....

सेमिनार की उस आखिरी शाम से उनके बीच की बर्फ पिघलने लगी थी| शुरुवात एक चिट्ठे से हुई थी जब उसने बिल्कुल खामोश रहने वाली नियति की डायरी में अपना नम्बर लिखा और लिखा-“शायद हम दोनों का एक दर्द हो| तुम्हारी ये ख़ामोशी खलती है ,तुमसे बात करना चाहता हूँ |”

 “ क्यों ?”

“ लगता है तुम्हारा मेरा कोई रिश्ता है शायद दर्द का - - “

पूरे सेमिनार वो चुप्प रही और वो उसे रिझाने अपनी और…

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Added by somesh kumar on November 16, 2014 at 1:30pm — 11 Comments

माँ

माँ ने तुलसी लगाई, ताकि घर में सुख-शांति आए | माँ ने मनी-प्लांट लगाया- ताकि घर में बरकत और समृद्धि आए |

माँ बीमार हो गई, बेटा ग्वारपाठा और गिलोय लगाने लगा  |

“माँ,दवाइयाँ रोज़ महंगी हो जाती हैं,आप इनका....“

माँ उन्हें भी सीचने लगी पर.....

.

सोमेश कुमार (मौलिक एवं अप्रकाशित )

Added by somesh kumar on November 15, 2014 at 9:00am — 3 Comments

तूती

तूती

अफ्सर की कवि पत्नी मंच संचालिका बन और मोटा लिफ़ाफ़ा पाकर खुश थी |

विभाग-मंत्री अपनी स्तुति से खुश थे |

अफ्सर का दिल ज़ोरों से बल्लियाँ मार रहा था |अब कुछ रोज़ दोनों जगह उसकी तूती बजेगी |

सोमेश कुमार (मौलिक एवं प्रकाशित )

Added by somesh kumar on November 14, 2014 at 8:09pm — No Comments

प्रतियोगिता

प्रतियोगिता

“ सर ,प्रतियोगिता में तो 24 प्रतिभागी आने थे पर हमें लेकर केवल 11 हैं | मज़ा नहीं आएगा |” वो थोड़ा निराश था |

“ये प्रतियोगिता है मेला नहीं ,वैसे भी पहले तीन ही जाने जाते हैं बाकी गिनतियों के बारे में कोई नहीं सोचता |येन-तेन प्रकारेण भवः विजयते |”

उनका कुटिल ज्ञान उसकी नसों में सुईयाँ चुभो रहा था |

सोमेश कुमार (मौलिक एवं प्रकाशित )

Added by somesh kumar on November 13, 2014 at 8:03am — No Comments

रेस का घोड़ा (लघुकथा)

“बेटा, 20 हज़ार में क्या होगा ? कुछ और कोशिश कर, आखिर तेरी दीदी की शादी है !“

“सुना है भईया ने 5 हज़ार देकर हाथ खड़े कर लिए हैं | वो उनकी बहन नहीं है क्या ?“

वो बढ़ते बोझ और थकान से टूटने लगा था |

“बेटा ! लंगड़े और बिदकने वाले घोड़ो को रेस में नहीं रखा जाता |“

पक्षपात माँ की बेबसी थी  |

.

सोमेश कुमार (मौलिक एवं अप्रकाशित)

Added by somesh kumar on November 12, 2014 at 9:00am — 6 Comments

जलावन

जलावन

शहर की सरकारी डिस्पेंसरी में छांटे गए पेड़ो की टहनियों ने उसकी आँखों में चमक पैदा की |हर चौथे रोज़ वो छोटे सिलिंडर में 100 रुपया की गैस भराती थी और अगर काम मिले तो एक रोज़ की मजूरी थी-250 रुपया | यानि इतना जलावन मतलब 800 रुपया |तीनों बच्चों के सरदी के पुराने कपड़े वो नए पटरी बज़ार से खरीद लेगी यानि कि उनकी दिवाली |वैसे भी उसका बेवड़ा-निठल्ला पति रोज़ उसकी गरिमा को तार-तार करता था फिर चौकीदार को तो उन जलावन का हिसाब भी देना होता है आखिर सर्दीयां आ रही थीं |

सोमेश कुमार (मौलिक एवं…

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Added by somesh kumar on November 11, 2014 at 8:00am — 5 Comments

चक्र-घिरनी

“सुना है शादी के बाद हाथों की लकीरें बदल जाती हैं.“ सुमन ने अपनी छह महीने पहले ब्याही बहन से पूछा

"वो तो तू ही जाने ज्योतिषाचार्या, मुझे तो इतना पता है की सात फेरों के बाद औरत के पाँवों की रेखाएं अवश्य बदल जाती है और ज़िन्दगी चक्र-घिरनी हो जाती है |"

उसने गहरी साँस भरते हुए कहा |

सोमेश कुमार

(मौलिक एवं अप्रकाशित )

 

Added by somesh kumar on November 3, 2014 at 9:00pm — 9 Comments

मुख्यधारा

 मुख्यधारा

“ ए रुको,अपना लाइसेंस दो “ट्रैफिक हवलदार ने उसकी मोटर-साईकिल रोकते और चलान मशीन की तरफ देखते हुए कहा |

“ क्यों ,क्या हुआ साहब ? ”

“ पिछली सवारी बिना हेलमेट के है |”

“ नाम-मदन ,गाड़ी न.- - - - “

सर ,कारण क्या देंगें ?

“ पिछली पुरुष सवारी बिना हेलमेट “

पर ये तो - - -

“अच्छा ,स्त्री है ,माफ़ करना,पहनावे और बालों से मालूम नहीं हुआ “

“तो सर ,चालन में स्त्री या पुरुष लिखना जरूरी है ?”

“हूँ |अब जब से औरतों के लिए हेलमेट…

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Added by somesh kumar on November 2, 2014 at 9:25pm — 5 Comments

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