वो रहते है मेरे जानिब से हर पल बेख़बर यारों
जब भी रात होती है खिड़की खोल देते हैं,
क़यामत आएगी इक दिन पता उनको भी है यारों
इसी बहाने से वो खिड़की से नज़ारा रोज़ लेते हैं,
मुक़द्दर में था दीदार करना नूर ए हुस्न का
इसी के वास्ते पौधों को वो पानी रोज़ देते हैं,
क़यामत आ ही जाएगी मै मिट जाऊं भी शायद
इसी खौफ में शायद वो नमाजें रोज़ पढ़ते हैं,
सोया रहता हूँ जब मैं बेख़बर हो दीन दुनिया से
वो नीदों में…
ContinueAdded by लोकेश सिंह on September 20, 2012 at 9:16pm — 11 Comments
गुजश्ता दिनों की याद मुझे जब भी आती है ,
 मेरी तनहायी मुझसे कुछ कहती है कुछ छुपा जाती है , (१)
 याद तेरे वादों की भी है तेरे इरादों की भी है , 
 रात आती है और कुछ सताती है कुछ रुलाती है ,(२) 
 सारे जहां में चर्चे हुए थे अपने लाब्वो लुवाब के, 
 क्या खाक इश्क करते डरके जालिम समाज से (३) 
 डर ऐसा हावी हुआ उनके दिलो दिमाग में, 
 वो छोड़ गये हमको रोता…
Added by लोकेश सिंह on September 20, 2012 at 1:30pm — 2 Comments
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
    © 2025               Created by Admin.             
    Powered by
     
    
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |