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Pankaj sagar's Blog (3)

मेरा गांव मेरा परिवार

गाँव की चंचल हवा को देखो,मस्त मौली इस फिजा को देखो

इसमें है चाहत के गीत,निश्छल प्रेम विश्वास और प्रीत |

इसमें है चाहत की नैया , बातो में विश्वाश है भैया |

सबके साथ है सबकी मैया ,अपना भी परिवार है भैया|

नाना नानी बड़े सलोने,मामी भी है इन्ही घरो में |

चाची जी का प्यार तो देखो,भाभी का तकरार तो देखो|

बड़ी माँ भी बड़ी सलोनी,प्यार से देती खाना पानी|

छोटी बहाना भी है संग में, उसका प्यार है अपने रंग में|

सुबह को झगडा शाम को प्यार,खिल उठता अपना संसार|

अभी बने हम… Continue

Added by Pankaj sagar on September 27, 2017 at 11:12am — 6 Comments

आज की प्रेम कहानी

         प्रेम कहानी

मेरी भी है प्रेम कहानी,जिसमे राजा और है रानी|

मिल कर खोला दिल का राज ,नदी किनारे की है बात|

कहा तुम्हारा साथ चाहिए ,प्यार भरे ज़ज्बात चाहिए|

दिल की बाते देना बोल ,नीम नहीं मिश्री के घोल|

मृग नैनी सु अधरों वाली ,तेरे बिना मै खाली खाली|

मेरी भी है प्रेम  कहानी ,जिसमे राजा और है रानी|

लड़की का जवाब

यही बात तो सब है कहते ,साथ हमारे कभी न रहते\

कभी यहाँ है कभी वहाँ है ,रब ही जाने कहा कहा है|

कभी है राधा कभी…

Continue

Added by Pankaj sagar on April 17, 2017 at 12:53pm — 5 Comments

प्रेम कहानी

         प्रेम कहानी

मेरी भी है प्रेम कहानी,जिसमे राजा और है रानी|

मिल कर खोला दिल का राज ,नदी किनारे की है बात|

कहा तुम्हारा साथ चाहिए ,प्यार भरे ज़ज्बात चाहिए|

दिल की बाते देना बोल ,नीम नहीं मिश्री के घोल|

मृग नैनी सु अधरों वाली ,तेरे बिना मै खाली खाली|

मेरी भी है प्रेम  कहानी ,जिसमे राजा और है रानी|

लड़की का जवाब

यही बात तो सब है कहते ,साथ हमारे कभी न रहते\

कभी यहाँ है कभी वहाँ है ,रब ही जाने कहा कहा है|

कभी है राधा कभी…

Continue

Added by Pankaj sagar on February 20, 2016 at 4:00pm — 1 Comment

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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई विकास जी बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है।गुणीजनो के सुझाव से यह और निखर गयी है। हार्दिक बधाई।"
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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। मार्गदर्शन के लिए आभार।"
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