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प्रदीप कुमार पाण्डेय 'दीप'
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प्रदीप कुमार पाण्डेय 'दीप''s Page

Profile Information

Gender
Male
City State
भुज, गुजरात
Native Place
सिमरिया,

प्रदीप कुमार पाण्डेय 'दीप''s Blog

बेइंतहा  जिन्हें   हम,    दिन    रात    चाहते   हैं (ग़ज़ल)

मफ़ऊल फ़ाइलातुन मफ़ऊल फ़ाइलातुन 

वो    प्यार    का    हमारे,    इस्बात    चाहते    हैं।

बेइंतहा  जिन्हें   हम,    दिन    रात    चाहते   हैं।।

होकर     खड़े      हुए    हैं,    बेदार    सरहदों    पर,

जो    अम्न-ओ-चैन   वाले,   हालात   चाहते   हैं।।…

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Posted on February 26, 2018 at 11:00pm — 9 Comments

मरीज़-ए-इश्क़ की दवा हकीम कर  सका  नहीं (ग़ज़ल)

मुफाइलुन मुफाइलुन मुफाइलुन मुफाइलुन

बिसात-ए-गैर क्या है जब, नदीम कर सका नहीं।

मरीज़-ए-इश्क़ की दवा हकीम कर  सका  नहीं।।

अदीब से हुए  नहीं  कुछ  एक  काम  आज  तक,

असीर कर  गया  जिसे  फ़हीम  कर सका नहीं।।

लिखीं  पढ़ीं   भले  कई,  कहानियाँ  ज़हान   की,

मगर क़सूर क्या रहा  अज़ीम कर  सका  नहीं।।

मिलान चश्म, चश्म और, क़ल्ब, क़ल्ब का हुआ,

कमाल जो हुआ कभी कलीम …

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Posted on February 25, 2018 at 11:11pm — 7 Comments

जब  उठी उनकी नज़र (चार कवाफ़ी के साथ ग़ज़ल)

अरकान: फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन  

जब  उठी  उनकी   नज़र,  इफ़रात   घर  जलने  लगे।

ख़ुद नहीं हमको  ख़बर, किस  बात  पर  मरने  लगे।।



आपकी   काबिल   मुहब्बत,   सीख   हमको   दे  गई,

राह  में   आईं   अगर,   आफा़त   हर   सहने   लगे।।



यह ज़मीं ज़न्नत नज़र आएगी इक दिन खुद-ब-खुद,

बाप-माँ  की  हर  बशर  ख़िदमात  गर  करने  लगे।।



मिल गई इक  बार  अब  नुसरत  उसे  फिर  से  वहाँ,

आजकल  वो  ज़र  जिधर  ख़ैरात  कर  चलने…

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Posted on February 22, 2018 at 11:00pm — 4 Comments

ग़ज़ल: जो भी बनकर हबीब आता है

*[बहर-ए-खफ़ीफ़ मुसद्दस मख़बून]*



*2122 1212 22*



बन के मेरा हबीब आता है।

जो भी दिल के करीब आता है।।



सबकी तकदीर में लिखा है सब,

कौन बनने गरीब आता है।।



खून मेरा उबलने है लगता,

रू-ब-रू जब रकीब आता है।।



कद्र भाई की है नहीं जिसको,

वही लेकर ज़रीब आता है।।



आजकल हो गया उसे है क्या,

बन के हरदम अजीब आता है।।



हौसले देखकर हमारे अब

पढ़ने खुतबा ख़तीब आता है।।



'दीप' अब ऐतबार है किसका

काम… Continue

Posted on January 30, 2018 at 2:48pm — 11 Comments

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