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Saurabh Pandey's Discussions (17,214)

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"पंछी रे ओ पंछी..  सो जा रे ओ पंछी.. मत छेड़ तू ये तराने.. सोजा रे ओ दो दिल दीवाने.. ब…"

Saurabh Pandey replied May 17, 2011 to "चित्र से काव्य तक" अंक-२(Now Close)

914 May 21, 2011
Reply by Er. Ambarish Srivastava

"चित्रानुरूप अभिव्यक्ति पर बार-बार बधाई. भाव निथर कर सामने आये हैं."

Saurabh Pandey replied May 17, 2011 to "चित्र से काव्य तक" अंक-२(Now Close)

914 May 21, 2011
Reply by Er. Ambarish Srivastava

"//घर हमारा अब तुम्हारा हो गये हम बे सहारा मूक हूँ समझो इशारा !// शिद्दत से महसूस किय…"

Saurabh Pandey replied May 17, 2011 to "चित्र से काव्य तक" अंक-२(Now Close)

914 May 21, 2011
Reply by Er. Ambarish Srivastava

"आपने अभिव्यक्ति को पसंद किया, मैं आभारी हूँ."

Saurabh Pandey replied May 17, 2011 to "चित्र से काव्य तक" अंक-२(Now Close)

914 May 21, 2011
Reply by Er. Ambarish Srivastava

"धन्यवाद प्रीतमजी."

Saurabh Pandey replied May 17, 2011 to "चित्र से काव्य तक" अंक-२(Now Close)

914 May 21, 2011
Reply by Er. Ambarish Srivastava

"यह तो बड़ा मजेदार संयोग है, भाई साहब. देखिये न, इलाहाबाद के जिस हिस्से में मैं रहता ह…"

Saurabh Pandey replied May 17, 2011 to "चित्र से काव्य तक" अंक-२(Now Close)

914 May 21, 2011
Reply by Er. Ambarish Srivastava

"अम्बरीषभाईजी...  आपने आकुल हृदय की टीस और विवश मनस की छटपटाहट को निचोड़ कर परोस दिया…"

Saurabh Pandey replied May 17, 2011 to "चित्र से काव्य तक" अंक-२(Now Close)

914 May 21, 2011
Reply by Er. Ambarish Srivastava

"गणेशभाईजी... बहुत-बहुत अभिभूत हूँ कि मेरे प्रयास की सार्थकता को अनुमोदित किया है आपन…"

Saurabh Pandey replied May 17, 2011 to "चित्र से काव्य तक" अंक-२(Now Close)

914 May 21, 2011
Reply by Er. Ambarish Srivastava

"भाई अम्बरीषजी,  मैं आपका तहेदिल से शुक्रगुज़ार हूँ.  मुझे इस चित्र में  आकुल-उद्विग्न…"

Saurabh Pandey replied May 17, 2011 to "चित्र से काव्य तक" अंक-२(Now Close)

914 May 21, 2011
Reply by Er. Ambarish Srivastava

"श्रद्धेय भाई योगराजजी,  आपकी सुधी और पारखी दृष्टि ने मेरी अभिव्यक्ति के मूल को इज़्ज़त…"

Saurabh Pandey replied May 17, 2011 to "चित्र से काव्य तक" अंक-२(Now Close)

914 May 21, 2011
Reply by Er. Ambarish Srivastava

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