For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

समीक्षा ---जगदीश पंकज

 

'कोहरा सूरज धूप'--संस्कृति के भावी संवाहक का प्रयाण गीत

 

जब कोई  रचनाकार अपने समय के सरोकारों के साथ उपस्थित होता है और दूसरों को अपने होने का अहसास कराता है,तब निः संदेह कुछ अव्यक्त सा रहता है जिसकी अभिव्यक्ति उस रचनाकार के कृतित्व में दृष्टिगोचर होती है। आज के हिंदी कविता के परिदृश्य में जो अपनी विशिष्ट पहचान के साथ उपस्थित हैं और भविष्य के लिए आशान्वित करते हैं उनमें बृजेश नीरज आश्वस्त करता हुआ नाम है जो अपने प्रथम कविता संग्रह 'कोहरा सूरज धूप' की रचनाओं से समकालीनता को प्रभावित कर रहा है।

' कोहरा सूरज धूप' कविता संग्रह में बृजेश नीरज ने छोटी-बड़ी साठ कविताओं को स्थान दिया है जो अपनी भाषा और शिल्प के द्वारा अपने समकालीन रचनाकारों से अलग ध्यान खींचती हैं।संग्रह की भूमिका  प्रसिद्ध साहित्यकार श्री मधुकर अस्थाना जी ने एक विहंगम दृष्टि में कहा है ,''बृजेश नीरज ने वर्तमान समय में अपने परिवेश में व्याप्त प्रत्येक विसंगति-विषमता एवं शोषण उत्पीड़न के साथ जीवन-संघर्ष एवं जिजीविषा को जांचा परखा है तथा उससे उत्पन्न अनुभूतियों को ग्रहण कर,संवेदनाओं को शब्द और स्वर दिया है।''डा.शरदिन्दु मुकर्जी ने भी अपनी राय व्यक्त करते हुए कहा है ,'कवि की सकारात्मकता सूरज बनकर दिखायी देती है ' तथा अपने निष्कर्ष में कहते हैं ,''हमारे सोये हुए चैतन्य को जगाने में बृजेश नीरज पूर्णतः सफल हुए हैं। वे अपनी और आने वाली पीढ़ी की आँखों में आंसू ही नहीं लाते ,सपने भी जगाते हैं और कोहरे के पीछे छिपे हुए सूरज के सामने हमें खड़ा कर देते हैं ,धूप के स्पर्श से खुद को पहचानने के लिए। यहीं कवि की कृति सार्थक हो उठती है। '' अपनी बात  में बृजेश स्वयं को व्यक्त करते हुए कहते हैं ,''मेरे लिए कविता मात्र मनोरंजन की वस्तु नहीं, यह मुझे तुष्टि भी प्रदान करती है तो परिमार्ज़ित भी करती है.'' और  अपनी सात्विक प्रस्तुति के साथ आगे कहा है ,''साहित्य के विशाल समुद्र में रचनाकार के तौर पर मेरी हैसियत कण के बराबर भी नहीं।

कहा जाता है कि नाम में क्या रक्खा है ,किन्तु संग्रह का  नाम ''कोहरा सूरज धूप''  अपनी ओर ध्यान आकर्षित करता है। यद्यपि इस नाम से संग्रह की किसी रचना का शीर्षक नहीं है ,अपितु कवि द्वारा रखे गए नाम का भी  मनोविश्लेषनात्मक आशय है  जो कवि को संघर्षरत रखे हुए है। कोहरा ,विसंगत स्थितियों का प्रतीक है। कवि सूरज के लिए संघर्ष करता हुआ धूप से अपने समय और समाज को प्रकाशित करना चाहता है। संग्रह की रचनाएँ कवि के  इसी प्रयास को उजागर कर रही  हैं। 'कोहरा' शब्द आते ही स्व.दुष्यंत कुमार की पंक्तियाँ मस्तिष्क में उभर आती हैं ,''मत कहो आकाश में कोहरा घना है ,यह किसी की व्यक्तिगत आलोचना है।'' कवितायें विसंगतियों को इंगित करते हुए उन्हें बदलने के लिए अपने स्तर पर यथास्थिति पर प्रहार कर रही हैं। यहां तक कि प्रणय से पूर्ण कवितायें भी अपने सरोकारों को नहीं भूलतीं और प्रेमानुभूति की रचनाएँ  भी परिवर्तनकामी चेतना से युक्त हैं।  

 किसी भी साहित्यिक कृति को पढ़कर  रचनाओं और रचनाकार के बारे में  स्वतः ही एक धारणा रूप लेती है। प्रस्तुत संग्रह को पढ़कर भी वही चित्रांकन हुआ जो कवि की विचार दृष्टि और अपने परिवेश के सम्बन्ध में उसकी विश्लेषण क्षमता की जानकारी देता है। स्थिति और घटनाओं के विवेचन ,प्रस्तुति और कथ्य की स्वीकार्यता के साथ कवि को जो उसकी अपनी निजी पहचान प्रकट करती है वह उसकी पक्षधरता है जो उसे किसी न किसी वर्गीय चेतना के चितेरे के रूप में स्वयं व्यक्त करती है।   अपने समाज और समय की सापेक्षता के साथ अपनी इन कविताओं में बृजेश नीरज सजगता से खड़े हैं।  मैं संग्रह की अंतिम कविता ,''राम!कहाँ हो!'' से प्रारम्भ करता हूँ जहाँ कवि अपने समय की विसंगतियों को चित्रित करते हुए आवाज देता है ,'राम! तुम कहाँ हो '…

''धन शक्ति के मद में चूर /रावण के सिर बढ़ते ही जा रहे हैं /आसुरी प्रवृत्तियाँ /प्रजननशील हैं /समय हतप्रभ /धर्म ठगा सा है आज फिर/राम! तुम कहाँ हो?''

लेकिन निराश नहीं है कवि और सतर में अर्थ की तलाश करता है।  चोटिल अनुभूतियाँ/कुंठित संवेदनाएं /अवगुंठित भाव,  अवचेतन की रहस्यमयी पर्तों में बिंदु-बिंदु विलयित/संलीन होती हैं,परन्तु ....

''इस सांद्रता प्रजनित गहनतम तिमिर में भी /है प्रकाश बिंदु-/अंतस के दूरस्थ छोर पर/ शून्य से पूर्व /प्रज्ज्वलित है अग्नि/ संतप्त स्थानक। …… ''  (अर्थ)

'क्रंदन' कविता में कवि की विचारदृष्टि प्रकट होती है। .......

''चूल्हा बार-बार/ एक ही बात पूछता है -/कौन है वो /जो खा गया/ इसके हिस्से की रोटी ?/पूरा गांव खामोश है पीपल के पत्ते /अफ़सोस में सिर हिला रहे हैं ''

संग्रह की कवितायेँ यों तो स्वतंत्र इकाई हैं किन्तु रचनाओं का मूल स्वर कवि की वैचारिक परिपक्वता को दर्शाता है जब वह अपने समय के यथार्थ का सजगता से प्रेक्षण ,विश्लेषण  और सरलता से  साधारणीकरण करके सृजन में रूपांतरित करता है। 'प्रातः' कविता में बड़ी सरलता से कवि बताता है की आकाश मंद हवा की लहरों पर बैठा और  प्रातः के लिए  .... ''और तिरोहित कर दी /रात/ क्षितिज में ''

'धारा ठिठकी सी ' में कवि धारा की दुर्दशा के समयगत सच को देख कर कह रहा है ……

''चांदनी थिरकती नहीं /कतराती है/कीच की परतों पर /पाँव धरने से ''  और आगे चलकर धारा से ही कहलवा दिया ,'' … रात के सन्नाटे में /एक कराह प्रतिध्वनित होती है -/'हे भगीरथ!/तुम मुझे कहाँ ले आए ?' ''

'उस पार' कविता में इस जीवन या इस लोक के पार कुछ होगा बी या शून्य होगा इसे जाये बिना कैसे जाना जा सकता है ,''.... और जाने को चाहिए /पंख/पर पंख मेरे पास तो नहीं /चलो पंछी से पूछ आएँ /गरुड़ से /ढूंढते हैं गरुड़ को ''

'विरोध' कविता में मात्र दिखावे के लिए किये जाने वाले  विरोध की निष्फलता पर कहा है ,''…… वातावरण में घुले नारे /खंडहर में पैदा हुई अनुगूंज की तरह/कम्पन पैदा करते हैं ''और आगे ,''.... अँधेरा गहराता जा रहा है ''

'आज़ाद हैं' में व्यंजना  देखिये ,''पेड़ की फुनगी पर टंगे/खजूर/उसकी परछाईं में /खेलते बच्चे ''  और आगे चलकर 'लोकतंत्र के गुम्बद के सामने /खम्भे पर मुँह लटकाए बल्ब'  /अकेला बरगद/ख़ामोशी से निहारता/अर्ज़ियाँ थामें लोगों  कतार  /बढ़ता कोलाहल/पक्षी के झरते पर'' .

'तुम्हारी आँखों में' कविता अभिव्यक्ति है आत्मीय क्षणों में  आशा की किरण की जिसे  देख रहा है कवि और कहता है ,''अपने दम्भ में/आगे निकल जाता हूँ /तुम्हें पीछे छोड़ /लेकिन/वक्त से टकराकर/ लौटना पड़ता है/ तुम्हारे पास /ऊँगली थामने /……… और आगे कहता है ,''तुम हमेशा ही /एक उम्मीद थी /मैं ही आँख मूँदे रहा/ अपने सपनों से/जो हमेशा तैरते रहे /तुम्हारी आँखों में।

जीव और जगत से परे पारलौकिक  क्या है ? रहस्यमय प्रश्न है ,'मैं क्या हूँ'कविता में उत्तर खोजता कवि पूछता है ,''शब्द से पूछा तो वह बोला ,/'मैं ध्वनि हूँ अदृश्य /रूप लेता हूँ /जब उकेरा जाता है/धरातल पर '. और पेड़ स्वयं को बीज का विस्तार बताता है तथा बीज को अपना छोटा अंश। ''अजब रहस्य /विस्तार का अंश /अंश का विस्तार ''. रहस्य अनुत्तरित रहता है ,''पर देह छूटेगी न /तब?/तब मैं 'मैं' होऊँगा /या कुछ और /…… तब भी समझ आएगा क्या /यह सारा रहस्य। ''

 'आहट' कविता में आसन्न आहटों को देख रहा है कवि ,''दिन भर जलने वाले /चूल्हे में उभर आईं /दरारें '' और आगे। …… ''रोज साँझ ढले/अस्त होते सूर्य की/किरणें/आ जाती हैं/टटोलने कोई आहट ''

गर्मी की वीभत्स्ता में भी आम आदमी की जिजीविषा का मार्मिक चित्रण करते हुए कहा ,''लेकिन तभी दिखता है/एक आदमी/सर पर ईंटें ढोता /कहीं पिघला न दे उसे भी/यह गरमी /लेकिन शायद/उसके आँतों का तापमान/बाहर के तापमान से अधिक है '' …  (गर्मी)

कुछ नए शब्दों को ढूँढता हुआ जब बाजार में आता है तो बाजार को बंद पाता है.इस खोज में अट्टालिकाओं को मुस्कराते हुए देख रहा है। नदी से मांगता है तो नदी भी बेबस है। केवल तीन शब्द मांग रहा है कवि ,''वो तीन शब्द/आदमी,पेट ,भूख/जाने कब तक लदे रहेंगे /मेरे कन्धों पर ''.... (तीन शब्द )

रास्ता भी बताता है इस संग्रह का कवि ,''तुम कभी समुद्र तक गए ही नहीं /अंगोछा लपेटे /इन पगडंडियों में ही गोल घूम रहे हो/.... वह रास्ता जिस पर खर-पटवार उग आये हैं /वह जाता है/दिल्ली तक/वहीँ एक गोल गुम्बद के नीचे /कैद है तुम्हारी किस्मत ''……(उस समंदर तक)

महानगरीय यथार्थ जहाँ व्यक्ति पहचानहीनता से ग्रस्त है और उसकी पहचान मकान के नंबरों तक सिमट गयी ,''बहत से मकान हैं यहाँ/एक जैसे/अनजाने ,अपरिचित/कतार में खड़े/पहचान के नंबरों के साथ ''……(मकान)

कवि आगाह करते हुए कह रहा है ,''धूप के डर से /बंद कर रखी है खिड़कियां/लोग/सहेजने लगे हैं अँधेरा''   और आस्वस्त करता है ,''हवा/ खिड़कियों के कपाट /थपथपा रही है ''……(बंद खिड़कियां) और 'उम्मीद' में बता रहा है ,''हालाँकि अब भी अँधेरे में हूँ/लेकिन कुछ रौशनी आ रही है मुझ तक/…सुबह होने को है ''

 

कवि कलम लेकर कुछ दूर चलता है और कुछ शब्द कुछ अक्षर बिखर जाते हैं ,और फिर ,'' जो /कहने से रह जाता है हर बार/कोई सत्य है/अब भी समझ से परे ''....... (हर बार) 

''आज़ादी'' कविता में स्पष्ट शब्दों में कह रहा है ,''कहाँ बदला कुछ/ राजाओं के  बदल गए /भाषा वाही है /सत्ता का चेहरा बदला/चरित्र नहीं /निरंकुशता समाप्त नहीं हुई/हिटलर ने मुखौटे पहन लिए बस ''

और 'आँधियों का मौसम ' में कह रहा है ,''तापमान बढ़ रहा है /लेकिन शिराओं में बहता रक्त/ठंडा है''. इसलिए ,''जागोगे तुम ?''में आह्वान करता है ,''जागो,/इस आंच को तेज करो /उठाओ डंडी /घुमाओ यह चाक/इस रेत  और किनकियों से इतर/तलाशो साफ़ मिटटी चढ़ा दो चाक पर /बना दो नए बर्तन हर घर के लिए /.... यह सोने का समय नहीं ''.

कवि की चिंता शब्दों को मुखर करने के लिए है ,अतः बार-बार उपयुक्त शब्दों की तलाश करता है ,''अर्थ खो रहे हैं शब्द ''(तलाश) तथा ,''लेकिन शब्द हैं कि बोलते नहीं/उन्हें इंतज़ार है कवि का/उठाये कलम/लिख दे उन्हें/फाटे कागज के टुकड़े पर/और वे चीख पड़ें ''(शब्द). इसलिए  वह शब्दों के लिए संग्रह की  पहली कविता से ही आरम्भ करते हुए प्रार्थना करता है ,''यह राह खो जाती है /दूर क्षितिज में /जहाँ से रोज़/उगता और अस्त होता है सूर्य ''....... ''माँ !/शब्द दो!/अर्थदो!''.  (माँ !शब्द दो !) . 

बहुत कुछ है जो अव्यक्त रह गया है इस संग्रह की रचनाओं के बारे में। ये रचनाएं समय और समाज सापेक्ष अभिव्यक्ति हैं उस कवि की जो जनपक्षीय सरोकारों से जुड़ा रहकर संघर्ष कर रहा है शब्दों के द्वारा और आह्वान कर रहा है भावी संस्कृति के सृजन का। यह संग्रह  संस्कृति के भावी संवाहक का प्रयाण गीत है। 

 

समीक्षित पुस्तक --'कोहरा सूरज धूप'

कवि --बृजेश नीरज

प्रकाशक --अंजुमन प्रकाशन ,इलाहाबाद

मूल्य -व्यक्तिगत  रू.20/-    संस्थागत  रू.120/- मात्र

 

--------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

 

जगदीश पंकज ,सोमसदन, 5/41, सेक्टर-2, राजेंद्र नगर ,साहिबाबाद,गाज़ियाबाद-201005. मो. - 08860446774 e-mail: jpjend@yahoo.co.in

 

Views: 392

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"आदरणीय नीलेश भाई , खूबसूरत ग़ज़ल के लिए बधाई आपको "
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय बाग़पतवी भाई , बेहतरीन ग़ज़ल कही , हर एक शेर के लिए बधाई स्वीकार करें "
2 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम -. . . . . शाश्वत सत्य
"आदरणीय शिज्जू शकूर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । आपके द्वारा  इंगित…"
5 hours ago
Mayank Kumar Dwivedi commented on Mayank Kumar Dwivedi's blog post ग़ज़ल
"सादर प्रणाम आप सभी सम्मानित श्रेष्ठ मनीषियों को 🙏 धन्यवाद sir जी मै कोशिश करुँगा आगे से ध्यान रखूँ…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम -. . . . . शाश्वत सत्य
"आदरणीय सुशील सरना सर, सर्वप्रथम दोहावली के लिए बधाई, जा वन पर केंद्रित अच्छे दोहे हुए हैं। एक-दो…"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय सुशील सरना जी उत्सावर्धक शब्दों के लिए आपका बहुत शुक्रिया"
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय निलेश भाई, ग़ज़ल को समय देने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया। आपके फोन का इंतज़ार है।"
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"मोहतरम अमीरुद्दीन अमीर 'बागपतवी' साहिब बहुत शुक्रिया। उस शे'र में 'उतरना'…"
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय सौरभ सर,ग़ज़ल पर विस्तृत टिप्पणी एवं सुझावों के लिए हार्दिक आभार। आपकी प्रतिक्रिया हमेशा…"
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय गिरिराज भंडारी जी, ग़ज़ल को समय देने एवं उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए आपका हार्दिक आभार"
9 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
9 hours ago
Nilesh Shevgaonkar posted a blog post

ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा

आँखों की बीनाई जैसा वो चेहरा पुरवाई जैसा. . तेरा होना क्यूँ लगता है गर्मी में अमराई जैसा. . तेरे…See More
9 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service