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कोण तलाशते लोग

तुम गोलाई में तलाशते हो कोण
सीधी सरल रेखा को बदल देते हो
त्रिकोण में
हर बात में तुम तलाशते हो
अपना ही एक कोण
तुम्हें सुविधा होती है
एक कोण पकड़कर
अपनी बात कहने में
बिन कोण के तुम
भीड़ के भंवर में
उतरना नहीं चाहते
तुम्हें या तो तैरना नहीं आता
या तुम आलसी हो
स्वार्थी और सुविधा भोगी भी
तुम्हें सत्य और झूठ से भी मतलब नहीं है
इस इस देश में गढ़ डाले है
तुमने हजारो लाखों कोण
हर कोण से तुम दागते हो तीर
ह्रदय को लक्ष्य करके
जब देश नहीं रहेगा
खींचकर बाहर लाये जायेंगे
कोनो में छुपे लोग
कोनों को फिर मूँद दिया जाएगा
अंधे पत्थरों से ....
नीरज कुमार नीर/ मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by pratibha pande on August 31, 2015 at 6:40pm

'सीधी सरल रेखा को बदल देते हो त्रिकोण में'  आज के परिपेक्ष्य में कितनी सही बात कही है आपने ,बधाई आपको इस सशक्त रचना के लिए आदरणीय नीरज कुमार  जी 


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Comment by मिथिलेश वामनकर on August 31, 2015 at 2:28pm

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