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मिलकर उनसे बिछड़ना तो दस्तूर हो गया....

यूँ कट- कटकर लकीरों का मिलना कसूर हो गया,
मिलकर उनसे बिछड़ना तो दस्तूर हो गया II

ज़िंदा रहने को कर दी खर्च साँसें तो मैने,
जिंदगी जीने को उनका होना पर ज़रूर हो गया II

तेरी आँखों ने बातें चंद मेरी आँखों से जो कर ली,
पिए बिन ही मेरी साँसों को तेरा सुरूर हो गया II

ज़रा- ज़रा सा है दिखता तू मेरे महबूब के जैसा,
कहा मैने ये चंदा से तो वो मगरूर हो गया II

चला गया जो तू जल्दी जल्द उठने की ख्वाहिश मे,
तेरे जाते ही मेरा ख्वाब वो बेनूर हो गया II

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Comment by Veerendra Jain on October 16, 2010 at 11:23pm
धन्यवाद गणेशजी ..बहुत बहुत शुक्रिया...

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 16, 2010 at 9:30am
ज़रा- ज़रा सा है दिखता तू मेरे महबूब के जैसा,
कहा मैने ये चंदा से तो वो मगरूर हो गया ई

बहुत ही सुंदर ख्यालात, वाह वाह वाह वीरेंद्र साहिब जबरदस्त कहा आपने, सभी लोग अपने महबूब को चाँद जैसा बतलाते है और आपने चाँद को अपने महबूब जैसा बताया, यह उम्द्दा है | बधाई आपको इस खुबसूरत ग़ज़ल पर |

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