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पहाड़ पर

चढ़ना भी पहाड़

सोचा ही नहीं

 

 

स्नेह आशीष

से भरा रहा सदा   

माँ का आंचल

 

xxxxx

 

 

महकी हवा

वासंती हैं नजारे

फागुन आया ।

 

 

मादक टेसू  

रंग गई चूनर

फागुन आया ।

 

 

भनभनाते

गुन गुन भँवरे

कैसी ढिठाई ।  

 

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by बृजेश नीरज on February 26, 2017 at 10:16am

कृपया हाइकु के शिल्प का अध्ययन करें, उसे समझें तब उस पर काम करें. एक वाक्य को तीन पंक्तियों में तोड़ देने से बनने वाली रचना हाइकु नहीं कहलाती.

Comment by Mohammed Arif on February 23, 2017 at 8:03am
आदरणीया नीलम जी आदाब, बहुत ही शानदार प्रस्तुति बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

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