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राय बहादुर : लघु कथा

“मेरे ग्रैंड फादर राय बहादुर थे” ..... उस व्यक्ति ने बुद्धिजीवियों की सभा में अकड़ के साथ यह बात कही ।   सभा के आयोजक ने भी गर्व से अपना सर ऊंचा कर लिया । वहाँ  उपस्थित लोग जो उस व्यक्ति को मिल रहे विशेष सम्मान, तवज्जो , उसके समृद्ध पहनावे एवं उसकी मंहगी गाड़ी से पहले ही नतमस्तक हो रहे थे, यह सुनकर थोड़े  और विनीत भाव दिखलाने लगे। उसे मंच पर सबसे ऊंची कुर्सी दी गयी । सब उसके साथ एक फोटो खिचवा लेना चाहते थे । महेश सभा में सबसे पीछे की कुर्सी पर उपेक्षित सा बैठा अपने मलिन कपड़ों को देख रहा था।  वह ज़ोर से चिल्ला चिल्ला कर कहना चाह रहा था  कि उसके दादा जी एक स्वतन्त्रता सेनानी थे , जिनकी सारी संपत्ति अंग्रेज़ो ने जब्त कर ली थी .... पर वह चुप रहा ....  

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Comment by Neeraj Neer on July 8, 2015 at 11:10am

आपको रचना पसंद आई इससे उत्साह बढ़ा ... आदरणीय सौरभ जी ... आपका हार्दिक आभार 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 8, 2015 at 2:12am

एक ऐसा वर्ग जिसके सदस्यों की संख्या गिनी हुई है, उसकी असह्य पीड़ा को बखूबी शाब्दिक किया है आपने आदरणीय.

Comment by Neeraj Neer on July 2, 2015 at 10:25pm

आदरणीय JAWAHAR LAL SINGH जी आपका बहुत धन्यवाद ...  

Comment by Neeraj Neer on July 2, 2015 at 10:24pm

आदरणीय maharshi tripathi  जी आपका धन्यवाद .... राय बहादुर दरअसल अंग्रेजों के द्वारा दी जाने वाली एक पदवी थी जो अंग्रेजों के द्वारा उन्हें प्रदान की जाती थी जो अङ्ग्रेज़ी शासन की मदद करते थे .... जैसे " सर" आदि 

Comment by Neeraj Neer on July 2, 2015 at 10:22pm

आदरणीय Dr Ashutosh Mishra जी रचना पसंद करने एवं सराहना हेतू आपका आभार .... 

Comment by Neeraj Neer on July 2, 2015 at 10:21pm

माननीया राजेश कुमारी जी ...... आपको रचना अच्छी लगी इससे मेरा उत्साह बढ़ा है ..... 

Comment by Neeraj Neer on July 2, 2015 at 10:20pm

आपका हार्दिक आभार Rahul Dangi जी ॥ 

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on July 2, 2015 at 7:22pm

अच्छी लघुकथा हुई है आज भी बहुत सारे स्वतंत्रता सेनानी के वंशज उपेक्षित हैं 

Comment by maharshi tripathi on July 2, 2015 at 5:17pm

सुन्दर आ.Neeraj Kumar 'Neer' जी ,,सत्य है आज वही लोग 'राय बहादुर' हैं,,जो अंग्रेजों के चाटुकार थे ,,आज भी उनका सम्मान अपने देश में एक सेलेब्रिटी की तरह किया जाता है ,परन्तु महेश अगर अपनी बात  कहता ,,तो सम्मान उसे भी मिलता पर उतना नहीं | 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 2, 2015 at 2:31pm

आदरणीय नीरज जी ..यह वर्त्तमान की सबसे बड़ी बिडम्बना है ..हर जगह यही हो रहा है ..लोग इस का जम कर फ़ायदा उठा रहे हैं ..बिषय को प्रस्तुत करने में आपकी रचना कामयाब रही ..इस रचना के लिए हार्दिक बधाई सादर 

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