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" मैंने तो बिना पैसे दिए ही शॉपिंग कर ली | वो बाजार में एक छोटी सी किराने की दुकान है न , आज वहां चली गयी थी | सामान लेने के बाद उसने पैसे लेने से इंकार कर दिया, बोला कि वो आपको जानता है और इसलिए पैसे नहीं लेगा "|
वो सोच में पड़ गया , अपने गाँव का छोटी जात का दुकानदार , जिसकी बेटी की शादी में १०१ रुपये देकर उसने अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ली थी |
आज वो अपने आप को बहुत छोटा महसूस कर रहा था |
मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment by विनय कुमार on May 27, 2015 at 2:56pm

बिलकुल सही कहा आपने आदरणीय शुभ्रांशु पाण्डेय जी , बहुत बहुत आभार.

Comment by Shubhranshu Pandey on May 27, 2015 at 2:21pm

आदरणीय विनय जी

सुन्दर कथा. दूसरों को छोटा बनाते और बताते कब स्वय्ं छोटा हो जाता है पता ही नहीं चलता.

सादर.

Comment by विनय कुमार on May 25, 2015 at 12:57am

बहुत बहुत आभार आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी । आप जैसे संजीदा लेखक से ऐसी टिप्पणी मिलना बहुत सुकून दे जाता है । सादर..


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Comment by मिथिलेश वामनकर on May 24, 2015 at 11:44pm

बढ़िया बहुत बढ़िया 

दिल खुश कर दिया 

मानवीय सदगुणों की पराकाष्ठा का बहुत सुन्दर चित्रण दिल को भा गया. विडम्बनाओं और विसंगतियों के बीच नैतिक मूल्यों को उभरती इस सकारात्मक लघुकथा के लिए बहुत बहुत आभार 

Comment by विनय कुमार on May 24, 2015 at 1:27am

बहुत बहुत आभार आदरणीय विनोद खगनवाल जी आपके उत्साह बढ़ाने वाले शब्दों के लिए..

Comment by विनय कुमार on May 24, 2015 at 1:26am

बहुत बहुत आभार आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी ।

Comment by विनय कुमार on May 24, 2015 at 1:25am

बहुत बहुत आभार आदरणीय वीर मेहता जी ।

Comment by विनय कुमार on May 24, 2015 at 1:21am

बहुत बहुत आभार आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी । बिलकुल सच कहा आपने..

Comment by विनोद खनगवाल on May 23, 2015 at 4:05pm
आदरणीय विनय कुमार जी अच्छा काम किया हुआ कभी ना कभी लोट कर हमारे पास वापस जरूर आता है इसलिए यह काम करते रहने चाहिए। बधाई स्वीकार करें एक अच्छी लघुकथा के लिए।
Comment by Shyam Narain Verma on May 23, 2015 at 12:42pm
बहुत बढ़िया कहानी , हार्दिक बधाई आपको

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