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बह गये तूफान में वो जा किनारे से लगे- ग़ज़ल

2122/ 2122/ 2122/ 212

बह गये तूफान में वो जा किनारे से लगे

लड़ने वाले ही मगर सब बेसहारे से लगे

 

हार के बाहर हुये वो चैन की अब साँस लें

जीतने की जो कहें मुझको वो हारे से लगे

 

बारहा मेरे करीब आकर ठहर जाते हैं यूँ

ये हवादिस मेरी किस्मत के इशारे से लगे

 

लुट गया सामां सफर में हर मुसाफिर का यहाँ

लोग भी बेआस बेबस गम के मारे से लगे

 

कागज़ों पर है नुमायाँ हाले दिल मेरा “शकूर”

राख से कुछ हर्फ़ कुछ उनमें शरारे से लगे

 

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by शिज्जु "शकूर" on April 26, 2015 at 12:13pm

आदरणीय डॉ गोपाल नारायण सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 15, 2015 at 4:49pm

शिज्जू भाई

बेहतरीन  गजल . सादर .


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Comment by शिज्जु "शकूर" on April 15, 2015 at 7:09am

आदरणीय दिनेश कुमार जी आपका तहेदिल से शुक्रिया


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Comment by शिज्जु "शकूर" on April 15, 2015 at 7:08am

आदरणीय गणेशजी हौसलाअफ़्ज़ाई के लिये तहेदिल से शुक्रिया


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Comment by शिज्जु "शकूर" on April 15, 2015 at 7:07am

आदरणीया निधि अग्रवाल जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया


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Comment by शिज्जु "शकूर" on April 15, 2015 at 7:07am

आदरणीया निधि अग्रवाल जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया


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Comment by शिज्जु "शकूर" on April 15, 2015 at 7:06am

आदरणीय केवल प्रसादजी आपका बहुत बहुत शुक्रिया


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Comment by शिज्जु "शकूर" on April 15, 2015 at 7:06am

आदरणीय मिथिलेश भाई मैं आपकी नवाजिशों के आगे नतमस्तक हूँ आपका तहेदिल से शुक्रिया


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Comment by शिज्जु "शकूर" on April 15, 2015 at 7:05am

आदरणीया राजेश दीदी आपका बहुत बहुत शुक्रिया


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Comment by शिज्जु "शकूर" on April 15, 2015 at 7:04am

भाई कृष्ण मिश्रा जी आपका हार्दिक आभार

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