For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ऐसे लोग.. वैसे लोग..
मिरे जैसे नहीं होते अब,
मिरे चेहरे जैसे लोग..
किताबों में ढूढ़ते..
गुजरते वक़्त को,
कब के गुजर गए;
गुजरे वक़्त जैसे लोग..
ये काबा तेरा;
ये शिवाला मेरा,
नींदों में कंधा बाँटते..
ये सरहदों जैसे लोग..
मंदिर की चौखट पे;
होती थी बैठकबाजी,
जाने कब मुसलमाँ बने;
ये मज़हबों जैसे लोग..
अजमत-ए-खुदा थी;
जो रंग-ए-सुर्ख दिया,
कल ज़मीन से निकलते;
नीले-पीले से लोग..
लिखता हूँ नज़्म;
बन जाती है मुअम्मा,
अब कौन सुलझाए;
खुद उलझे से लोग..??
देख रखी है दुनिया;
थोड़ी सी हमने भी,
केवल दो होते हैं;
अच्छे लोग औ बुरे लोग...

Views: 420

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sanjay Kumar Singh on April 16, 2010 at 8:40am
Bahut badhiya Vivek jee, aapney sahi likha hai Log do hi hotey hai achhey log aur burey log,
Comment by BIJAY PATHAK on April 14, 2010 at 1:41pm
Vivek Mishra ji ,
sarbpratham badhai itna sunder rachna ke liye, padhte hi samajh me aata hai ki ' hriday ne racha rachna hai'
Bijay Pathak
Comment by विवेक मिश्र on April 14, 2010 at 9:16am
हौसला अफज़ाई का शुक्रिया.. ये तो आप लोगों का प्रेम है, जो हम लिख लेते हैं, वरना हम कोई प्रोफेशनल लेखक थोड़े ही हैं. ये कविता मैने ट्रेन में सफ़र करते वक़्त शुरू की थी, और अभी कल परसो जाकर ख़त्म हुई. मेरा मानना है कि लोगों को हिंदू-मुसलमान नही, केवल इंसान मानना चाहिए. हम सब एक हैं और हम सबका मालिक भी एक ही है.

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 13, 2010 at 11:55pm
बहुत सही विवेक भाई, आप तो गर्दा उड़ा दिये है, बिल्कुल सोलह आना सही और 24 केरेट सुध बात लिखी है आपने, दुनिया मे बस दो ही प्रकार के लोग होते है अच्छे और बुरे, अगर यह भेद भाव मिट जाता और दुनिया मे केवल अच्छे लोग ही हो जाते तो क्या कहने, ये दुनिया शायद स्वर्ग से सुंदर बन जाता,
Comment by PREETAM TIWARY(PREET) on April 13, 2010 at 1:40pm
bahut badhiay rachna baa vivek jee....
ये काबा तेरा;
ये शिवाला मेरा,
नींदों में कंधा बाँटते..
ये सरहदों जैसे लोग..
मंदिर की चौखट पे;
होती थी बैठकबाजी,
जाने कब मुसलमाँ बने;
ये मज़हबों जैसे लोग..
dhanybaad vivek bhai ehja post kare khatir...............
Comment by amit on April 13, 2010 at 11:43am
ji sahi kaha ji kewal do prakar ke log hote hai achhe aur bure.....
Comment by Admin on April 13, 2010 at 11:26am
ये काबा तेरा;
ये शिवाला मेरा,
नींदों में कंधा बाँटते..
ये सरहदों जैसे लोग..
मंदिर की चौखट पे;
होती थी बैठकबाजी,
जाने कब मुसलमाँ बने;
ये मज़हबों जैसे लोग..
वाह विवेक जी वाह, इस कविता की जीतनी भी तारीफ़ किया जाय वो शायद कम होगी ,फिर आप की एक बेहतरीन रचना हम लोगो के बीच है, आप जो अपने कविता मे उर्दू लफ्जो का पर्योग जिस खूबसूरती से करते है वो तारीफ़ के लायक है,अंत मे जो आप ने कहा की लोग दो ही होते है अच्छे लोग और बुरे लोग, बिलकुल सही कहा है, बहुत बहुत धन्यवाद इस खुबसूरत कविता के लिये, आप के अगला पोस्ट का इंतजार बहुत सिद्दत से रहेगा,

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
8 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
10 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय, दयावान मेठानी , गीत,  आपकी रचना नहीं हो पाई, किन्तु माँ के प्रति आपके सुन्दर भाव जरूर…"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय दयाराम मैठानी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
15 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय दयाराम मैठानी जी प्रदत्त विषय पर आपने बहुत सुंदर रचना प्रस्तुत की है। इस प्रस्तुति हेतु…"
15 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी, अति सुंदर रचना के लिए बधाई स्वीकार करें।"
16 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"गीत ____ सर्वप्रथम सिरजन अनुक्रम में, संसृति ने पृथ्वी पुष्पित की। रचना अनुपम,  धन्य धरा…"
20 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ पांडेय जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
23 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"वाह !  आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त विषय पर आपने भावभीनी रचना प्रस्तुत की है.  हार्दिक बधाई…"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ पर गीत जग में माँ से बढ़ कर प्यारा कोई नाम नही। उसकी सेवा जैसा जग में कोई काम नहीं। माँ की…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय धर्मेन्द्र भाई, आपसे एक अरसे बाद संवाद की दशा बन रही है. इसकी अपार खुशी तो है ही, आपके…"
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

शोक-संदेश (कविता)

अथाह दुःख और गहरी वेदना के साथ आप सबको यह सूचित करना पड़ रहा है कि आज हमारे बीच वह नहीं रहे जिन्हें…See More
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service