For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

2122 2122 2122 212

प्यार का तुमने दिया मुझको सिला कुछ भी नहीं,
मिट गये हम तुझको लेकिन इत्तिला कुछ भी नहीं।

कोख में ही मारकर मासूम को बेफ़िक्र हैं,
फिर भी अपने ज़ुर्म का जिनको गिला कुछ भी नहीं।

राह जो खुद हैं बनाते मंजिलों की चाह में ,
मायने उनके लिए फिर काफिला कुछ भी नहीं।

हौंसले रख जो जिये पाये सभी कुछ वे यहाँ,
बुज़दिलों को मात से ज्यादा मिला कुछ भी नहीं।

ज़िंदगी चाहें तो बेहतर हम बना सकते यहाँ,
ज़ीस्त में ग़र रंजोगम का दाखिला कुछ भी नहीं।

रहते जो हर हाल में खुश वो कहाँ कहते कभी,
*जिंदगी में जिंदगी जैसा मिला कुछ भी नहीं*।

चाह 'शुचिता' प्रेम की रख मंजिलें करती है तय,
प्रेम जीवन में अगर तो अधखिला कुछ भी नहीं।

मौलिक व अप्रकाशित




Views: 785

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by शुचिता अग्रवाल "शुचिसंदीप" on January 8, 2019 at 10:16pm

2122 2122 2122 212

संशोधित

प्यार का तुमने दिया हमको सिला कुछ भी नहीं
मिट गये हम तुझको लेकिन इत्तिला कुछ भी नहीं

कोख में ही मारकर मासूम को बेफ़िक्र हैं
फिर भी अपने ज़ुर्म का उनको गिला कुछ भी नहीं।

राह जो खुद हैं बनाते मंजिलों की चाह में ,
अस्ल में उनकी नज़र में काफिला कुछ भी नहीं।

हौसले रख जो जिये पाये सभी कुछ वे यहाँ
बुज़दिलों को मात से ज्यादा मिला कुछ भी नहीं।

ज़िंदगी चाहें तो हम बहतर बना सकते मगर
ज़ीस्त में हो रंज-ओ-ग़म का दाखिला कुछ भी नहीं।

रहते जो हर हाल में खुश वो कहाँ कहते कभी
*जिंदगी में जिंदगी जैसा मिला कुछ भी नहीं*।

राह'शुचिता' प्रेम की ग़र मंजिलें मिल जायेगी
प्रेम जीवन में अगर तो अधखिला कुछ भी नहीं।

मौलिक व अप्रकाशित


डॉ.
सुचिता अग्रवाल "सुचिसंदीप"



Comment by शुचिता अग्रवाल "शुचिसंदीप" on January 8, 2019 at 9:08pm

हार्दिक आभार आदरणीय भाई समर कबीर जी। आपने गज़ल की बारीकियों से अवगत कराते हुए मेरा मार्गदर्शन किया है। सच तो यह है कि गजल पर मेरी अच्छी पकड़ अभी तक नहीं है, सीखने का प्रयास कर रही हूँ, आपका मार्गदर्शन यूँ ही मिलता रहेगा तो सीखना आसान हो जाएगा।

आपका अतिशय आभार समर भाई।

Comment by Samar kabeer on January 8, 2019 at 8:40pm

मुहटरमा सुचिसंदीप अग्रवाल जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

'प्यार का तुमने दिया मुझको सिला कुछ भी नहीं,
मिट गये हम तुझको लेकिन इत्तिला कुछ भी नहीं'

मतले में शुतरगुरबा दोष है,ऊला मिसरे में 'मुझको' की जगह "हमको" कर लें तो ये ऐब निकल जायेगा ।

'फिर भी अपने ज़ुर्म का जिनको गिला कुछ भी नहीं'

इस मिसरे में 'जिनको' की जगह "उनको" शब्द उचित होगा ।

'मायने उनके लिए फिर काफिला कुछ भी नहीं'

इस मिसरे का शिल्प कमज़ोर है,और इसमें 'मायने' शब्द ग़लत है सहीह शब्द है "मा'ना",इस मिसरे को यूँ कर सकती हैं:-

"अस्ल में उनकी नज़र में क़ाफ़िला कुछ भी नहीं'

'हौंसले रख जो जिये पाये सभी कुछ वे यहाँ'

इस मिसरे में 'हौंसले' को "हौसले" कर लें ।

'ज़ीस्त में ग़र रंजोगम का दाखिला कुछ भी नहीं'

इस मिसरे में रदीफ़ बदल रही है, 'कुछ भी नहीं' की जगह "कुछ भी न हो' हो रही है,इस मिसरे को यूँ कर सकती हैं:-

'ज़िन्दगी चाहें तो हम बहतर बना सकते मगर

ज़ीस्त में हो रंज-ओ-ग़म का दाख़िला कुछ भी नहीं'

मक़्ते के दोनों मिसरों में रब्त नहीं,भाव भी स्पष्ट नहीं,देखिये ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बहुत सुंदर अभिव्यक्ति हुई है आ. मिथिलेश भाई जी कल्पनाओं की तसल्लियों को नकारते हुए यथार्थ को…"
7 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश भाई, निवेदन का प्रस्तुत स्वर यथार्थ की चौखट पर नत है। परन्तु, अपनी अस्मिता को नकारता…"
yesterday
Sushil Sarna posted blog posts
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार ।विलम्ब के लिए क्षमा सर ।"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया .... गौरैया
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी । सहमत एवं संशोधित ।…"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
Monday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
Monday
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service