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मुहब्बत की दावत: ग़ज़ल: हरि प्रकाश दुबे

122--122 / 122--122

मुहब्बत मुहब्बत मुहब्बत लिखेंगे,

अलावा नहीं कुछ हिमाकत लिखेंगे !

 

नहीं कल्पना ही लिखेंगे यहाँ अब,

लिखेंगे तो बस हम हकीकत लिखेंगे!

 

लिखेंगे नहीं हम कभी झूठ बातें,

सलामत अगर हैं सलामत लिखेंगे!

 

मुहब्बत ही करते रहें हैं यहाँ जो ,

ग़ज़ल दर ग़ज़ल हम मुहब्बत लिखेंगे!

 

ग़ज़ल जब लिखेंगे तुम्हारे लिए तो,

कसम से तुम्हें खूबसूरत लिखेंगे!

 

इशारा हमें जो किया आपने है ,

इसे हम मुहब्बत की दावत लिखेंगे!

 

गये छोड़कर के मिरे पास में दिल,

मुहब्बत की उसको वसीयत लिखेंगे!

 

नहीं लिख सका गर मुहब्बत की बातें ,

खुदा की अजी हम इबादत लिखेंगे!  

 

 

"मौलिक व अप्रकाशित"

© हरि प्रकाश दुबे

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Comment

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Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on July 18, 2017 at 10:03pm

ग़ज़ल बहुत अच्छी हुई है आदरणीय जिसके लिए बधाई स्वीकारें | एक जगह मुझे थोडा संशय है कृपया मार्गदर्शन करें 

लिखेंगे नहीं हम कभी झूठ बातें, ( यहाँ बातें तो बहु वचन हुआ न फिर झूठ एक वचन ऐसा क्यों ) | सादर 

कृपया ध्यान दे...

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