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"बाऊजी ! बच्चों के इम्तहान शुरू हो रहे हैं ।आपकी बहू चाहती थी , बेहतर होता अगर आप कुछ रोज़ भाईसाहब के यहाँ हो आते ।"
" पर बेटा ! अभी तो समय पूर्ण होने में दो माह बाकी हैं ।"
" वो तो ठीक है , पर आप तो जानते हैं , घर में एक ही अतिरिक्त कमरा है , वो भी ......।"
" कबाड़ी वाला ....कबाड़ी ....। बाऊजी ! कुछ कबाड़ है क्या ? "
"हाँ है तो.... शायद तुम्हारे बाजार में भी इसका कोई मोल न होगा...।"
मौलिक व अप्रकाशित ।

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Comment by Archana Tripathi on June 15, 2015 at 2:04am
वृद्ध जनो की उपेक्षा दर्शाती खूबसूरत लघु कथा।
बधाई शशि बंसल जी
Comment by shashi bansal goyal on June 14, 2015 at 11:31pm
हार्दिक आभार एवं धन्यवाद आद0 कृष्ण मिश्रा जी ।
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on June 14, 2015 at 8:38pm

सुन्दर लघुकथा हुयी है आ० शशि बंशल जी बधाई!

Comment by shashi bansal goyal on June 13, 2015 at 12:51pm
हार्दिक आभार एवं धन्यवाद आदरणीय वीरेंदर वीर मेहता जी ।
Comment by VIRENDER VEER MEHTA on June 13, 2015 at 12:41pm

बहुत सुन्दर लघुकथा! सादर बधाई स्वीकार करे  आदरणीया शशि बंसल जी | 

Comment by shashi bansal goyal on June 12, 2015 at 9:37am
हार्दिक आभार कांता जी ।
Comment by shashi bansal goyal on June 12, 2015 at 9:36am
हार्दिक आभार आद0 राजेश कुमारी जी ।
Comment by shashi bansal goyal on June 12, 2015 at 9:35am
आदरणीय विनय जी व आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी रचना में सुधार किया है कृपया दोबारा दृष्टिपात करिये और मार्गदर्शन करिये ।सादर ।
Comment by kanta roy on June 11, 2015 at 11:23pm
हाँ , शशि जी आखिरी पंक्ति में इतनी उम्दा आकर बहक सी गई है । वैसे बहुत ही उम्दा लेखन हुआ है यह भी आपका
। बधाई आपको

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 11, 2015 at 11:22pm

अच्छी लघु कथा हुई शशि जी ,बहुत- बहुत बधाई. 

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