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बेटी..रजनी ! तुम्हारे मामाजी के लड़के से, तुम्हारी ननद याने अपनी गायत्री की शादी, तय हो ही गई, मैं बहुत खुश हूँ, बस..! उन लोगो से लेनदेन की बात संभाल लेना, तुम तो जानती ही हो. आजकल महंगाई आसमान छू रही है.......सुलोचना जी ने अपनी बहु को बेटी बनाकर, बड़े ही प्यार से कहा..

जी हाँ..! माँ जी..महंगाई तो पिछले वर्ष भी आसमान से टिकी हुयी थी, जब आपने मेरे मायके वालों से लाखों का सोना और पूरी गृहस्थी का सामान मांग लिया था..खैर, वैसे मैंने मामाजी को फालतू खर्च की बजाय, मंदिर से शादी के लिए राजी कर लिया है.......रजनी ने अपनी सास के नहाने के गर्म पानी में, थोडा ठंडा पानी डालते हुए कहा..

   जितेन्द्र ' गीत '

 ( मौलिक व् अप्रकाशित )

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 3, 2014 at 10:21pm

आपका हार्दिक आभार  आदरणीय भुवन जी, स्नेह बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by भुवन निस्तेज on April 1, 2014 at 10:26pm

यथार्थ पर प्रकाश डालती हुयी रचना....

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 20, 2013 at 11:44pm

रचना पर आपकी उत्साहबर्धक प्रतिक्रिया हेतु आपका हार्दिक आभार आदरणीय सुनील गुप्ता जी, स्नेह बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by Sunil Gupta on November 20, 2013 at 12:15pm

"देखन में छोटो लगें घाव करें गम्भीर."

आपकी लघुकथा पर यह पंक्ति सटीक बैठ रही है.

सुंदर कथ्य और संतुलित एवं सधे हुए व्यंग हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय जितेन्द्र 'गीत' जी.

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 20, 2013 at 12:00pm

आदरणीय आशीष जी, इस बात को जवाब कह लो, या एक वर्ष से अपने अन्तर में  दबी हुयी, बहु की भावनाओं को पहुची हुयी ठेस जो आज एक सबक भी दे गई और अपने संस्कारों से परिवार के प्रति सही जिम्मेदारी भी निभा गई

रचना पर आपकी प्रतिक्रिया से बड़ा मनोबल मिला, स्नेह बनाये रखियेगा, सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 20, 2013 at 11:14am

आदरणीय शुभ्रांशु जी, लघुकथा पर आपकी प्रतिक्रिया का बड़ी बेसब्री से इन्तजार रहता है, आप सच कह रहे है, कुछ लोग जीवन को खेल समझ संबंधों और परिस्थितियों से खेलते ही हैं, खेल में जीतने के बाद भी हार मिलती है, और हारने वाले को एक सकारात्मक अनुभव,

आपका हृदय से आभार , स्नेह बनाये रखियेगा सादर!

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on November 20, 2013 at 10:29am

वाह ! जैसे को तैसा जवाब !!
बढ़िया लघु-कथा है भाई जीत जी !
हार्दिक बधाई !!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 20, 2013 at 10:16am

आदरणीय सौरभ जी, मुझ जैसे पाठकमात्र की कोशिशो पर  रंग आप और आप जैसे ओ बी ओ के सभी रचनाकारों के स्नेह, मार्गदर्शन व् आशीर्वाद से चढ़ रहा है, आपके कहने अनुसार भाषा पर भी प्रयासरत रहूँगा, आपका हृदय से आभार

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 20, 2013 at 9:56am

सर्वप्रथम आपका हृदय से आभार आदरणीया डा.प्राची जी, आदरणीया मैं एक सकारात्मक पहलु पर विचार व्यक्त करते हुए यह कहूँगा कि माँ तो माँ ही होती है चाहे पति की माँ हो पत्नी की, शायद ईश्वर ने माँ का हृदय ही ऐसा बनाया है, सिर्फ कहीं कहीं हमने सास-बहु के रिश्ते को बदनाम कर रखा है, इसे देखा जाये तो शायद इक नए रिश्ते पर असुरक्षित मानसिकता, जिसमे नारी की भावनाओं को ईश्वर द्वारा अधिक संवेदनशील बनाया जाना , अगर सास या बहु शिक्षित या समझदार है तो इस संवेदनशील भावना के रहते भी परिवार स्वरुप गाड़ी को,उनके द्वारा किसी भी ट्राफिक जाम से सुरखित निकाल कर ले जाया जा सकता है,

अपना स्नेह व् आशीर्वाद बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by Shubhranshu Pandey on November 20, 2013 at 9:37am

आदरणीय जीत जी, 

सम्बन्धों और परिस्थितियों से खेलते हुये सुन्दर कथा है...बधाई..

सादर.

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