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ग़ज़ल - खोल शिखा फिर आन करें हम

मात्रा भार - 222 ,222 ,22



खोल शिखा फिर आन करें हम  

आज गरल का पान करें हम। 

ज्वालाओं के धनुष बना कर 
लपटों का संधान करें हम।  

 

अंगारों सा धधक रहा उस 

यौवन पर अभिमान करें हम।  

अँधियारा  जब छा जाये  तो  

खुद को ही दिनमान करें हम। 

समिधाओं से राख उड़ी है 

आहुति का आह्वान करें हम।

अपना कौन पराया कितना  

अब उनकी पहिचान करें हम।  

कर कौन रहा कल की चिंता 

कल का भी कुछ ध्यान करें हम।

-ललित मोहन पंत 

0021 रात 

30. 10 . 13  

"मौलिक  व  अप्रकाशित "

    

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Comment by ram shiromani pathak on October 30, 2013 at 8:21pm

खोल शिखा फिर आन करें हम  

आज गरल का पान करें हम। 

ज्वालाओं के धनुष बना कर 
लपटों का संधान करें हम।  

 

अंगारों सा धधक रहा उस 

यौवन पर अभिमान करें हम।  

अँधियारा  जब छा जाये  तो  

खुद को ही दिनमान करें हम। ////शब्दों का अद्भुत प्रयोग   ////// बहुत बहुत  बधाई भाई ललित  जी। .

Comment by savitamishra on October 30, 2013 at 7:23pm

sundar

Comment by dr lalit mohan pant on October 30, 2013 at 6:55pm

आदरणीय विजय मिश्र जी Kavi Devendra Pandey जी  annapurna bajpai जी , मेरे जैसे नवांकुर के प्रयास पर  आप सब की  स्नेह वर्षा के प्रति में कृतज्ञ हूँ  … पुनः आभार 

Comment by annapurna bajpai on October 30, 2013 at 6:36pm

बहूत सुंदर रचना , बहुत बधाई आपको आ0 ललित मोहन जी । 

Comment by Devendra Pandey on October 30, 2013 at 5:25pm

BAhut Sundarrrrrrrr

Comment by विजय मिश्र on October 30, 2013 at 4:36pm
दूरगामी सोच को लेकर एक उदेश्य को दृष्टि रख लिखी गई गज़ल किसी यग्य अनुष्ठान के आह्वान को चिह्नित करती बढ़ी है .सोदेश्य रचनाओं की तृप्ति ही अनोखी होती है . दीपावली की अनेक शुभकामना और इस सार्थक रचना के लिए ढ़ेरों बधाई .

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