For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

एक पहाड़ी स्त्री का दर्द

 

मेरे और उनके बीच
एक पारदर्शी दीवार खड़ी है.
वे हँसती, ठिठोली करती
कभी बुरांश की लाली को छेड़ती
चाय के बागानों में उछलती कूदती
मुझे बुलाती हैं –
मैं पारदर्शी दीवार के इस पार
छटपटाकर रह जाती हूँ.

जब काले-सफेद बादलों के हुजूम
आसमान से उतरते, वादियों से चढ़ते
उन्हें घेर लेते,
वे ओझल हो जाती हैं और,
मैं प्यासी, बोझिल ह्र्दय ले
पारदर्शी दीवार के इस पार
छटपटाकर रह जाती हूँ.

 

बादल तिरते और तैरते हुए
दूर निकल जाते हैं
मुझे फिर से उनकी खिलखिलाहट सुनाई देती है
वे वादियों के उस पार
पहाड़ की ढलान पर चढ़ते हुए
उन चोटियों को छूना चाहती हैं
और मुड़-मुड़ कर मुझे कहती हैं
‘आओ, हम साथ छूएँ उन ऊँचाईयों को’
मैं पारदर्शी दीवार के इस पार
मूक दर्शक बन
छटपटाकर रह जाती हूँ.

 

पगडंडियाँ बनती, मिटती और फिर बनती
नयी नयी दिशाओं में फैल रही हैं
मेरे पैर अटक गए हैं
रिवाजों और रूढ़ियों के दलदल में –
कोई मेरा हाथ पकड़ो
इस दलदल के बाहर पैर रखने की जगह दो
मैं पारदर्शी दीवार को तोड़
नयी पगडंडियाँ बनाऊंगी,
नयी ऊँचाईयों तक –
यह मेरा वादा है.

.

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 601

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on July 31, 2015 at 10:55pm
मैं शाइरी का दिल दादा हूँ, फिर वो कविता में हो या ग़ज़ल में कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on July 31, 2015 at 10:33pm

प्रिय गनेश लोहानी जी, रचना पर आने के लिए धन्यवाद लेकिन समझ में नहीं आया कि आप केवल बुरांश की लाली पर ही रुक गए या कि पूरी रचना को पढ़ने का कष्ट किया है. सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on July 31, 2015 at 10:30pm

आदरणीया कांता जी, मेरी रचना के साथ आपका एकात्म होना मुझे पुरस्कृत कर रहा है. हृदय से आभार. सादर.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on July 31, 2015 at 10:26pm
आदरणीय मिथिलेश जी, हार्दिक आभार

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on July 31, 2015 at 10:25pm
आदरणीय समर कबीर जी, रचना आपको पसंद आयी, मैं पुरस्कृत हुआ - विशेष इसलिए कि आपको साधारणत: ग़ज़ल पर ही टिप्पणी करते देखता हूँ. सादर
Comment by ganesh lohani on July 30, 2015 at 2:40pm

बुरांश की लाली 

Comment by kanta roy on July 29, 2015 at 5:53pm
जाने ऐसा लगा की वो पारदर्शी शीशे के पीछे मै ही खडी थी... ये आवाज मैने ही लगाई है वहाँ से..
उस दीवार को तोडने की एकदिन मैने ही ख्वाहिश की थी... बेहतरीन रचना आदरणीय शरदेंदू जी

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 28, 2015 at 12:48pm

आदरणीय शरदिंदु मुकर्जी सर, इस गहन प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई निवेदित है. सादर नमन 

Comment by Samar kabeer on July 28, 2015 at 11:21am
जनाब शारदिन्दु मुकर्जी जी,आदाब,इस सुन्दर प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
3 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल आपको अच्छी लगी यह मेरे लिए हर्ष का विषय है। स्नेह के लिए…"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति,उत्साहवर्धन और स्नेह के लिए आभार। आपका मार्गदर्शन…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ भाई , ' गाली ' जैसी कठिन रदीफ़ को आपने जिस खूबसूरती से निभाया है , काबिले…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील भाई , अच्छे दोहों की रचना की है आपने , हार्दिक बधाई स्वीकार करें "
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है , दिल से बधाई स्वीकार करें "
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , खूब सूरत मतल्ले के साथ , अच्छी ग़ज़ल कही है , हार्दिक  बधाई स्वीकार…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल  के शेर पर आपकी विस्तृत प्रतिक्रिया देख मन को सुकून मिला , आपको मेरे कुछ…"
5 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपसे मिले अनुमोदन हेतु आभार"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service