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Mohammed Arif's Blog – June 2018 Archive (4)

कविता---बेबस क़लम और हम

क़लम लाचार है

विरोध की तेज़ धार है

घोषणाएँ जारी हैं

ग़रीब का भूखा पेट भी आभारी है

झोंपड़ियों के ऐब सारे ढँक गए

ग़रीब के घर बेबसी की बीमारी है

संसद में भूख का आँकड़ा गरमा रहा है

रहनुमा विकास का तराना गुनगुना रहा है

धर्म के ठेकेदारों की दबंगई है

ईमान की बोली सस्ती लगी है

दहशत में सबकुछ फलफूल रहा है

मदारी ख़ुद झूठ के बाँस पर चल रहा है

बहुत तरक़्की हो चुकी है

चैन की बाँसुरी भी सुर खो चुकी है

सरकार का चरित्र साफ़-साफ़ नज़र आ रहा है…

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Added by Mohammed Arif on June 26, 2018 at 8:30am — 17 Comments

कविता--कश्मीर अभी ज़िंदा है भाग-2

कश्मीर अभी ज़िंदा है आँसू गैस में

डल झील की बर्फ में फैले ख़ून में

जवान बेटे की मौत पर दहाड़े मारती माँ में

ईद की खुशियों में शामिल होते मातम में

जवान बेटों के अगवा होने में

आतंकियों के दुष्कर्म में

कश्मीर अभी ज़िंदा है सीज़फायर उल्लंघन में

बर्फ की वादियों में ख़ून के कोहरे में

डरी सहमी , सिसकती रंगीन कालीनों में

गलियों , चौराहों से रोज़ गुज़रते जनाज़ों में

बंद खिड़की , दरवाज़ों से झाँकते मासूमों में

देश विरोधी तकरीरों में

कश्मीर अभी ज़िंदा है जलती…

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Added by Mohammed Arif on June 21, 2018 at 12:58am — 18 Comments

कविता--कश्मीर अभी ज़िंदा है भाग-1



कश्मीर अभी ज़िंदा है

झेलम के ख़ून में

केसर के रक्त में नहाया

बेवाओं की चीख पुकार में

दहााड़ेंं मारती माँओं में

पत्थरबाज़ी में

कश्मीर अभी ज़िंदा है भटके नौजवानों में

कश्मीर अभी ज़िंदा है शहीदों के जनाज़ोंं में 

डरे सहमे शिकारों में

ख़ूूून से सनी पतवारों में

दया के लिए भीख माँगते हाथों में

धमकी भरे पत्रों में

हैण्ड ग्रेनेड में

मोर्टार और एके फोर्टी सेवन में

असंख्य हथियारों के ज़खीरों में

बरामद पाकिस्तानी हथियारों में…

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Added by Mohammed Arif on June 17, 2018 at 8:30am — 16 Comments

कविता --हाँ, हमें अभी और देखना है

हाँ , हमें अभी और देखना है

टूटते शहर का मंज़र

रिश्तों में उलझी संवेदनहीनता का दंश

अपनों के बीच परायेपन का अहसास

घुट घुटकर रोज़ मरना

पीढ़ियों के अंतर की गहरी खाई में गिरना

निर्मम व्यवस्था का शिकार होना

हाँ, हमें अभी और देखना है

लालच का उफनता समुद्र

अकेलेपन के चुभते काँटें

बीमार बाप के लरजते हाथ

झुर्रियों की ख़ामोशियाँ

बेचैन माँ की प्रतीक्षा

कर्कश तरंगों का शोर

विघटन की शैतानी लकीरें

भरोसे में लालच के दैत्य

ठहरा…

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Added by Mohammed Arif on June 8, 2018 at 10:00am — 14 Comments

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"आदरणीय  दिनेश जी,  बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। सादर।"
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"आदरणीय  जी, बढ़िया ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। गुणिजनों की इस्लाह तो…"
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