For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ओ बी ओ लखनऊ चैप्टर की साहित्य संध्या – माह फरवरी 2017 – एक प्रतिवेदन :: डॉ0 गोपाल नारायण श्रीवास्तव

ओ बी ओ लखनऊ चैप्टर की साहित्य संध्या माह फरवरी 2017 – एक प्रतिवेदन :: डॉ0 गोपाल नारायण श्रीवास्तव

 

रागात्मक प्रकृति के बीच एक आत्म-मुग्ध जोड़े को दूर से निहारते, उद्दीपन का भाव लिए फगुनहटी बयार की मादक शीतलता में रविवार 26  फरवरी 2017 को लखनऊ शहर का सुरम्य राम मनोहर लोहिया पार्क उपन्यासकार कौस्तुभ आनंद चंदोला के सौजन्य से ओ बी ओ लखनऊ चैप्टर की साहित्य-संध्या का साक्षी बना. कार्यक्रम का  प्रवाहमय सञ्चालन युवा कवि  मनोज कुमार शुक्ल  ‘मनुज’ ने किया.

 

माँ शारदा की सुरभित वंदना संचालक ‘मनुज’ ने अपने चिर परिचित अंदाज में कुछ नव सृजित सिंहावलोकन घनाक्षरियों से की और काव्य-पाठ के लिए प्रथम कवि के रूप में  पेशे से वैज्ञानिक प्रदीप शुक्ल का आह्वान किया. कवि प्रदीप ने शहीद की शादी  शीर्षक से एक अद्भुत रूपक प्रस्तुत किया,  जिसमें भारत के प्रख्यात क्रांतिकारी चन्द्र शेखर ‘आज़ाद’ अंग्रेजों से घिरकर स्वयं मृत्यु का वरण करते हैं. इसमें विवाह का जो रूपक बाँधा गया है वह लंबा होने के कारण दो भागों में विभक्त है. शिल्पगत हल्के रंग के बरक्स सर्वथा एक नयी सोच पर आधारित होने के कारण यह रूपक मन को बाँध लेने में सफल हुआ है.

रचना का एक अंश यहाँ निदर्शन के रूप में प्रस्तुत है –

 

शेखर शरीर चित्तौड़ दुर्ग सा, वहां पद्मिनी आयी

कनपटी पर पिस्टल सटा दिया, जौहर की चिता जलाई

खिलजी से गोरे  रहे ताकते,  नहीं हाथ कुछ आया

अंतिम प्रणाम कर मातृभूमि को, शेखर ने ट्रिगर दबाया

 

अपने बहुचर्चित उपन्यास ‘संन्यासी योद्धा’ से साहित्य जगत में ध्यानाकर्षण करने वाले कथाकार कौस्तुभ आनंद चंदोला कविता रचने के प्रति अति कृपण हैं और कदाचित स्वतःस्फूर्त हो अपनी तरंग में कुछ लिखते हैं. उन्होंने मानव की सहनशीलता पर अपने विचार कविता/अकविता  के माध्यम से इस प्रकार प्रस्तुत किये –

 

व्यक्ति इतना दुःख सह लेता है

पीड़ा के साथ इतना संघर्ष कर लेता है

मृत्यु साँसों के द्वार को खटखटा रही है

परन्तु सांस की अंतिम इकाई टूटने तक

जीने की आशा संजोता है

 

ओ बी ओ, लखनऊ चैप्टर के संयोजक  डॉ0  शरदिंदु मुकर्जी बांग्ला साहित्य के प्रमुख कवियों की मूल रचनाओं को हिन्दी की समकालीन कविता के रूप में भावायित करने में सिद्धहस्त हैं. अपनी इस अद्भुत क्षमता का परिचय वे पूर्व में  कई बार ओ बी ओ, लखनऊ चैप्टर की काव्य गोष्ठियों में दे चुके हैं. इस बार भी उन्होंने गुरुवर रवीन्द्र नाथ टैगोर की दो कविताओं का भावानुवाद  प्रस्तुत किया. इनमे से एक कविता है – ‘चिरंतन’. इस कविता में जीवन्मुक्ति के उपरान्त संसार अपने बुजुर्गों या विभूतियों को सहसा कैसे विस्मृत कर देता है, इस वास्तविकता पर गुरुदेव का तीव्र कटाक्ष देखने को मिलता है - जीव की जैविक गतिविधि समाप्त हो जायेगी. धीरे धीरे उसका इतिहास विस्मृत होता जाएगा, लेकिन संसार का कार्य-व्यापार ज्यों का त्यों चलता रहेगा. तब फिर अनंत यात्रा का पथिक बन किसी प्रभात में मैं फिर तुम्हारे पास आऊँगा, साथ रहूँगा. यह अलग बात है कि तब तुम मुझे पहचानोगे नहीं, पर इससे मुझे क्या फर्क पड़ता है!

 

यह कविता गीता के दर्शन ‘आत्मा की अमरता’ और ‘पुनर्जन्म के सिद्धांत’  –‘वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि । तथा शरीराणि विहाय जीर्णा- न्यन्यानि संयाति नवानि देही ‘ का समर्थन करती  है .

डॉ0  शरदिंदु मुकर्जी के भावानुवाद ने इस कविता को हिदी प्रेमियों के लिए जीवंत कर दिया है. किसी कवि के यूटोपिया में जाकर  वैसा ही स्वप्निल हो जाना और उसे फिर शब्दों से मूर्त्त कर देना कोई खेल नहीं है और इस कारनामे का प्रमाण है गुरुदेव की प्रश्नगत कविता का यह भावानुवाद –

 

तब कौन कहता है , उस प्रभात में मैं नहीं हूँ

तुम्हारे हर खेल में साथी बन कर मैं वही हूँ

नए नाम से तुम पुकारोगे मुझको

बाँधोगे नए बाहु डोर से तुम मुझको

ऐसे ही अनन्त यात्रा का पथिक बन

सदा तुम्हारे बीच मैं आता रहूँगा

तुम मुझे, गर न  पहचान पाओ तो क्या हुआ ?

सितारों को देखकर गर न  बुलाओ तो क्या हुआ ?

 

डॉ0  शरदिंदु ने गुरुवर की जिस दूसरी कविता का भावानुवाद हिन्दी में प्रस्तुत किया, उस कविता को अगस्त 1941 में अपनी मृत्यु से कुछ दिन पूर्व रोग शैय्या पर लेटे-लेटे गुरुदेव ने पढ़ा था और कदाचित उपस्थित लोगों ने उसे लिपिबद्ध कर लिया था. इस कविता  में मृत्यु के पूर्वाभास का संकेत दिखता है . इसलिए इसमें एक अप्रतिहत करुणा है और जीवन की दुर्धर्ष यात्रा के अवसान पर जीवन की उपलब्धि के प्रति जीव की आशंका से भरी एक मुखर चिंता भी है. गुरुदेव की इस मूल कविता के भावानुवाद का एक अंश निम्न प्रकार है –

 

आँखों को ढककर

भोले मन को और नहीं भुला सकता मैं

अंतिम गणना  होने के बाद

दूर सीमा के पार

जान पाऊंगा जीत हुयी है इस खेल में

या अंततः मेरी ही हुयी है हार

 

सुश्री कुंती मुकर्जी  ने छोटी-छोटी एकाधिक कवितायेँ सुनाई.  भूख से बिलखते  बच्चों का दर्द महसूस करते समय कवयित्री यह विभेद नहीं करतीं कि वे बच्चे नृजाति के हैं अथवा संसार के किसी अन्य प्राणि वर्ग के. अपनी भावाभिव्यक्ति हेतु सुश्री कुंती ने जिन बिम्बों का प्रयोग किया है , वे बड़े ही चित्ताकर्षक हैं.  यथा –

 

पत्रविहीन वृक्ष

सूखी डाल पर एक घोंसला

आकाश की ओर चोंच उठाये

कुछ चूजे  प्रतीक्षारत

भूख से तड़पते

दूर शहर की एक व्यस्त गली में

बिजली की तार पर लटका एक पक्षी  का शव

पर्यटक खींचते हैं तस्वीर

टाउन हाल में लगती है प्रदर्शनी

किसने दिया चूजों को दाना ?

 

संचालक मनोज कुमार शुक्ल  ‘मनुज’ के तेवर बड़े बगावती दिखे. ओजस्वी कविता रचने और कहने की उनकी अपनी एक शैली है. वे बड़े आत्मविश्वास से अपनी परख कुछ इस  प्रकार करते हैं –

 

मैं लडूंगा वक्त के सौदागरों से

धूप लूंगा थक चुके उन दिनकरों  से

काटकर सब फंद  तिकड़म से लडूंगा

आस रखिये जुल्म पर भारी पडूंगा 

 

अंतिम कवि  के रूप में  डॉ 0  गोपाल नारायन  श्रीवास्तव  ने  ‘एक प्रश्न ‘  शीर्षक से एक अतुकांत कविता सुनायी और महाभारत के अर्जुन  को कटघरे में खड़ा किया. यदि कृष्ण न होते तो अर्जुन शायद एक साधारण योद्धा  ही कहे जाते. कृष्ण  उनके सारथी , मित्र और मार्गदर्शक मात्र ही नहीं थे, वे सही मायने में अर्जुन के आत्मबल के सच्चे पर्याय थे. एक अन्य  कविता ‘हृदयाग्नि ‘ में डॉ0 श्रीवास्तव ने  कविता  की उद्भावना को स्पष्ट करते हुए कहा -

 

शब्द व्यायाम से गीत बनते नहीं

वेदना के बिना व्यर्थ अनुराग है

गीत तो आंसुओं में ढले हैं सदा

यदि हृदय में प्रबल आग ही आग है

 

इस पाठ के बाद सभी कवि धीरे-धीरे कविता के सम्मोहन से यथार्थ के धरातल पर आये. उस आत्म-मुग्ध जोड़े का अब दूर-दूर  तक पता नहीं था. जो शरूर तारी था वह खुमार में बदल चुका था. कुछ पलों के बाद हम शीरोज़ हैंग-आउट में आये और जलपान करते हुए सोचने को बाध्य हुए -

 

अभी तो हमने सितारों की बात की है

कुछ गंभीर विचारों  की बात की है

बात नहीं बनेगी इन बातों से दोस्तों

हमने तो बस इश्तिहारों की बात की है  ?   (सद्य रचित )

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

Views: 441

Reply to This

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
9 hours ago
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
12 hours ago
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
12 hours ago
Ravi Shukla commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बहुत अच्छी गजल आपने कहीं करवा चौथ का दृश्य सरकार करती  इस ग़ज़ल के लिए…"
13 hours ago
Ravi Shukla commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेंद्र जी बहुत अच्छी गजल आपने कहीं शेर दर शेर मुबारक बात कुबूल करें। सादर"
13 hours ago
Ravi Shukla commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी गजल की प्रस्तुति के लिए बहुत-बहुत बधाई गजल के मकता के संबंध में एक जिज्ञासा…"
13 hours ago
Ravi Shukla commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय सौरभ जी अच्छी गजल आपने कही है इसके लिए बहुत-बहुत बधाई सेकंड लास्ट शेर के उला मिसरा की तकती…"
13 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर आपने सर्वोत्तम रचना लिख कर मेरी आकांक्षा…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे... आँख मिचौली भवन भरे, पढ़ते   खाते    साथ । चुराते…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service