For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ओ बी ओ लखनऊ चैप्टर की साहित्य संध्या – माह अप्रैल 2017 – एक प्रतिवेदन

ओ बी ओ लखनऊ चैप्टर की साहित्य संध्या – माह अप्रैल 2017 – एक प्रतिवेदन
डॉ0 गोपाल नारायण श्रीवास्तव
हिन्दी की मानक पत्रिका कादम्बिनी ‘ के सम्पादन से 27 वर्षो तक निर्बाध रूप से जुड़े यशस्वी गीतकार डॉ0 धनञ्जय सिंह की अध्यक्षता में ओ बी ओ लखनऊ चैप्टर की साहित्य संध्या रविवार, दिनांक 16 अप्रैल 2017 को 37,रोहतास एन्क्लेव में एक बार फिर से गुलजार हुयी. कार्यक्रम का समारंभ सञ्चालक मनोज कुमार शुक्ल ‘मनुज’ की वाणी-वंदना से हुआ. उन्होंने सिंहावलोकन घनाक्षरी के सुमधुर पाठ से वातावरण को सारस्वत प्रकाश से राशि-राशि सज्जित कर दिया.
काव्य-पाठ का पहला आह्वान कथाकार एवं कवयित्री कुंती मुकर्जी के लिए हुआ पर उनके द्वारा स्मार्ट फ़ोन पर रचनाये तलाशने के अवकाश का लाभ डॉ0 शरदिंदु मुकर्जी को मिला.
हिन्दी कवियों ने निशा-सुन्दरी और प्रभात का आलंबन लेकर अनेक महत्वपूर्ण कालजयी रचनायें की है. इस परम्परा में डॉ0 शरदिंदु जिस भोलेपन और निरपेक्षता से रात और प्रभात के मिलन का उत्सव दर्शन करते हैं, वह अद्भुत है.

यह रोज़ ही की बात है
जब रात गए
शबनम की बरसात हुआ करती है-
पात-पात रात भर
वात बहा करती है,
चोरी छिपे मैंने भी
देखा है दोनों को,
जब रात से प्रभात की
मुलाक़ात हुआ करती है-
मैं तो बस दर्शक हूँ
यह एक तस्वीर है.

डॉ0 शरदिंदु की अनेक कविताओं में उस अज्ञात सत्ता के प्रति उनका संवाद निर्विवाद रूप से मुखरित हुआ है. वे लौकिक अनुभूति को जिस सहजता से अध्यात्म की ऊंचाइयों तक ले जाते है, वह उनकी अपनी मनीषा है. उन्ही के शब्दों में इस जादुई करिश्मे का आस्वाद निम्न पंक्तियों में लिया जा सकता है .

-------जब तुम आओ,
अपने स्पर्श से मेरी अज्ञानता को झंकृत कर,
नए शब्दों की, नए संगीत की
और हरित वेदना की रश्मि डोर पकड़ा देना,
मैं उसके आलोक में
तुम्हारे आनंदमय चरणों तक
स्वयं चलकर आऊंगा मेरे प्रियतम

सुश्री कुंती अभी भी स्मार्ट फ़ोन में निमग्न थीं. अतः ग़ज़लकार कुंवर कुसुमेश को ग़ज़ल-पाठ हेतु आमंत्रित किया गया. कुसुमेश जी ने बातरन्नुम कुछ बेहतरीन ग़ज़ले पढ़ी. उनके ग़ज़ल की निम्नांकित पंक्तियाँ काफी पसंद की गयी.

थरथराने लगा आशियाँ-आशियाँ
फिर डराने लगीं बिजलियाँ-बिजलियाँ
कोई अखबार देखो किसी दिन भी तुम
दहशतों में सभी सुर्खियाँ-सुर्खियाँ

सुश्री कुंती मुकर्जी अब तक फ़ोन की उलझन से बाहर आ चुकी थीं. उन्होंने कुछ छोटी-छोटी किन्तु धारदार कवितायेँ सुनाईं. छायावाद के प्रवर्त्तक कवि जयशंकर प्रसाद ने कामायनी में जिस ‘आनंदवाद’ का समर्थन किया वह वस्तुतः जीव की सबसे स्वाभाविक अभिलाषा है. कवयित्री कुंती भी इसी आनंदवाद के समर्थन में खुशियों के चंद कतरे बटोरने के लिये क्षितिज के पार जाने को उद्द्यत प्रतीत होती हैं -

एक कसक ...!
मैं छोड़ आयी दुनिया के एक छोर पर...!
चल माझी...!
क्षितिज के उस पार...!!
बटोर लाऊँ खुशियों के चंद कतरे...!
मेरे घर-आँगन में ज़रूरत है बहुत...!!
जाने कौन ले जाता है सारी खुशियाँ...!
सुबह-ओ-शाम लूटकर...!!''

ओ बी ओ,लखनऊ चैप्टर की साहित्य संध्या में प्रथम बार उपस्थित कवयित्री एवं ग़ज़लकार सुश्री भावना मौर्य ने रवायती ग़ज़लों से सभी को प्रभावित किया. उनकी एक ग़ज़ल का मतला यहाँ बतौर बानगी प्रस्तुत है.

मिटा कर दूरियां सारी पनाहों में चले आना
उठे जो हूक़ सी दिल में दुआओं मे चले आना

प्रसिद्ध कथाकार कौस्तुभ आनंद चंदोला ने प्यार की डगर और काँटों भरी राह की दुश्वारियों को इस प्रकार निरूपित किया –

काँटों पर चलना आसान नहीं
चल पड़े तो दर्द सहना है मुश्किल
प्यार की डगर आसान नहीं मगर
चल पड़े तो कदम पीछे खींचना भी मुश्किल

ग़ज़लकार भूपेन्द्र सिंह की उपस्थिति से महफिल और भी बारौनक हुयी. उन्होंने बातरन्नुम कुछ कसी हुयी ग़ज़लें पेश की. यथा –

परिवर्तन है मूल इसे विध्वंस कहें, निर्माण कहें .
है परिवर्तित रूप इसे जीवंत कहें, निष्प्राण कहें
परिवर्तन है नियम प्रकृति का सत्य वही जो शाश्वत है
शून्य’ जन्म की संज्ञा दे दे’ चाहे महाप्रयाण कहें

डॉ० गोपाल नारायण श्रीवास्तव ने ग्रीष्म ऋतु के बढ़ते प्रभाव को सवैया छंदों के माध्यम से प्रस्तुत किया. मत्तगयन्द (मालती) सवैया एवं अरसात सवैया में रचे गए ऋतु वर्णन की एक झाँकी यहाँ प्रस्तुत है.

बीत बसंत गयो जब से सखि तेज प्रभाकर ने हठि ठानी
मादकता अरु शीतलता सब आतप तेज सु मध्य सिरानी
उष्ण हुआ सब वात बिना श्रम देह समस्त पसीजत पानी
सूखत कंठ बुझात न प्यास जु चक्रत लूक हवा हहरानी

तात न वात न गात सुखात न चैन इहाँ कछु भी तुम पाइयो
भोजन पाय सनेह सु नाथ कछू गुन ईश्वर के तब गाइयो
बिस्तर आज लगा घर बाहर शंक नहीं मन में तुम लाइयो
ग्रीष्म प्रचंड दहावत है तुम और दहावन रात न आइयो

सञ्चालक मनोज कुमार शुक्ल ‘मनुज’ ने प्रेम रहित योग और साधना को ख़ारिज करते हुए कहा –

कौन साधक प्रेम से होकर विरत साधक हुआ ?
या कहो कब साधना में प्रेम है बाधक हुआ ?
कृष्ण सा प्रेमी कहो तुम दूसरा फिर कौन है ?
योग भी केशव के आगे सर झुकाता मौन है .

जानी-मानी कवयित्री सुश्री संध्या सिंह ने संसार की नश्वरता पर उच्छ्वास भरते हुए बड़ी मार्मिक रचना सुनायी –

जीवन गागर रीत रही है धीरे-धीरे
उम्र देह को जीत रही है धीरे-धीरे
सुख –दुःख, रोना-हंसना, झगड़े, मान-मनौव्वल
एक कहानी बीत रही है धीरे-धीरे.

अध्यक्ष डॉ0 धनञ्जय सिंह ने अपने काव्य पाठ से सारी सभा में एक सम्मोहन सा डाल दिया. कालजयी गीत ‘मौन की चादर ‘ का पाठ करते हुए जब वे अपनी कविता के चरम पर पहुंचे तो उनके शब्दों के जादुई स्पर्श से सभी उपस्थित साहित्य अनुरागी आत्मविस्मृत हो गए.
कवि का घर्घर-नाद कुछ इस तरह गुंजायमान था –

नित्य ही होता
हृदयगत भाव का संयत प्रकाशन
किन्तु मैं
अनुवाद कर पाता नहीं हूँ
जो स्वयं ही
हाथ से छूटे छिटककर
उन क्षणों को
याद कर पाता नहीं हूँ

यों लिए
वीणा सदा फिरता रहा हूँ
बाँध ले
शायद तुम्हें झनकार कोई

उनकी ग़ज़ल ने भी सभी को अनुप्राणित किया –

गीत जीने का मन भी न हो गीत गाने से क्या फायदा ?
यूँ रदीफ़ों के संग काफिये फिर मिलाने से क्या फायदा ?

इस ग़ज़ल की समाप्ति तक सांझ गहराने लगी थी. नैश अन्धकार धीरे-धीरे पाँव पसारने लगा था. साहित्य अनुरागी मानो सोते से जाग उठे. लौकिक बाध्यताएँ उन्हें घर वापस बुला रही थीं. पर काव्यानंद का अनुभव तो गूंगे के गुड़ की तरह है. इसका आस्वाद जिसे मिलता है वह साहित्यिक गोष्ठियों में बिना किसी आलंबन के खिंचा चला आता है. इसीलिये तो काव्यानंद को ब्रह्मानंद का सहोदर माना गया है.

Views: 412

Attachments:

Reply to This

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से मश्कूर हूँ।"
40 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a discussion
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय  दिनेश जी,  बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। सादर।"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमीर बागपतवी जी,  उम्दा ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। सादर।"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय संजय जी,  बेहतरीन ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। मैं हूं बोतल…"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय  जी, बढ़िया ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। गुणिजनों की इस्लाह तो…"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय चेतन प्रकाश  जी, अच्छी ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। सादर।"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीया रिचा जी,  अच्छी ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। सादर।"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,  बहुत ही बढ़िया ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए।…"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमित जी, बहुत शानदार ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। सादर।"
6 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीया ऋचा जी, बहुत धन्यवाद। "
8 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमीर जी, बहुत धन्यवाद। "
8 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service