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ग़ज़ल ‘ ऐसा दिया है ज़हर ‘ --- 'चिराग'

221 2121 1221 212

 

बाज़ारे-इश्क़ सज गया पूरे उफान पर

शीला का नाम चढ़ गया सबकी ज़बान पर

 

धंधे की बात कीजिए कच्ची कली भी है

क्या कुछ नहीं मिलेगा मेरी इस दुकान पर

 

मुँह में दबाए पान मियाँ किस तलाश में

रंगीनियाँ भुला भी दो उम्र अब ढलान पर

 

कूंचे में आए हुस्न का बाज़ार देखने

चोरी से देखते है सभी इक निशान पर

 

रोज़ आते हैं दीवाने यहाँ गम को बाँटने

करते है वाह-वाह वो घुंघरू की तान पर

 

घायल हो जिसके प्यार में उसको कहाँ ख़याल

ध्यान अपना अब लगाओ ज़रा तुम अज़ान पर

 

उल्फत का खेल संग मेरे खेलकर 'चिराग'

ऐसा दिया है ज़हर की बन आई जान पर

 

"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment

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Comment by Mukesh Verma "Chiragh" on April 20, 2014 at 11:25pm

आदरणीय वैद्यनाथ सारथी जी
हौसला अफज़ाई के लिए शुक्रिया.

Comment by Mukesh Verma "Chiragh" on April 20, 2014 at 11:24pm

आदरणीय राम शिरोमणि जी
हौसला अफज़ाई के लिए शुक्रिया.

Comment by Mukesh Verma "Chiragh" on April 20, 2014 at 11:23pm

आदरणीय बृजेश जी
हौसला अफज़ाई के लिए शुक्रिया.

Comment by Mukesh Verma "Chiragh" on April 20, 2014 at 11:22pm

आदरणीया सविता जी
हौसला अफज़ाई के लिए शुक्रिया. आपकी साहित्यिक नज़र को मेरा सलाम. दिल से दुआएँ आपके लिए. 

Comment by Mukesh Verma "Chiragh" on April 20, 2014 at 11:13pm

आदरणीय गुमनाम जी
हौसला अफज़ाई के लिए शुक्रिया.

Comment by Mukesh Verma "Chiragh" on April 20, 2014 at 11:11pm

आदरणीय अरुण जी
हौसला अफज़ाई के लिए शुक्रिया. जी, बेहर टाइप करने मे गड़बड़ी हो गयी थी.. जिसे मैने उसी समय सही कर दिया था.

उस मिसरे पर नादिर साहेब ने भी सवाल उठाया था..जिसका जवाब मैने दे दिया था..

Comment by Saarthi Baidyanath on April 20, 2014 at 11:22am

बहुत बढ़िया 

रोज़ आते हैं दीवाने यहाँ गम को बाँटने

करते है वाह-वाह वो घुंघरू की तान पर...खूब 

 

Comment by ram shiromani pathak on April 20, 2014 at 10:46am

सुन्दर प्रस्तुति  ..........  हार्दिक बधाई आपको 

Comment by बृजेश नीरज on April 20, 2014 at 8:23am

अच्छा प्रयास है! आपको बधाई!

Comment by savitamishra on April 19, 2014 at 7:52pm

बहुत खूब

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