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दुख देने को आये जो हालात, सुनो-- (ग़ज़ल) -- मिथिलेश वामनकर

22---22---22---22---22---2

 

दुख देने को आये जो हालात, सुनो

अपना दिल भी पहले से तैनात सुनो

 

दे देना फिर तुम भी उत्तर, सुन लूँगा

लेकिन बेटा पहले पूरी बात सुनो

 

बाबुल के आँगन से आँसू कहते है

किस कारण से लौटी है बारात सुनो

 

एक सदी भी यारां कम पड़ जायेगी

चाहे तो तुम मेरे दुख दिन रात सुनो

 

फिर तो वो भी सारी बातें सुन लेंगे

उनसे अपनी पहले तो औकात सुनो

 

आज उजाले सूरज ने ही बेचे है

करते हैं सरगोशी ये जुल्मात, सुनो

 

नाहक ही न पत्थर है हर मुट्ठी में

शीशें वाले घर में थे वजूहात सुनो

 

सोचो तो ये कितना मुश्किल लगता है

खुद के सीने पर सिर रख जज्बात सुनो

 

 

 

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(मौलिक व अप्रकाशित)  © मिथिलेश वामनकर 
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Comment by मिथिलेश वामनकर on December 25, 2015 at 3:59am

आदरणीय सुनील जी, ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार, बहुत बहुत धन्यवाद. 

Comment by shree suneel on December 5, 2015 at 7:42pm
सोचो तो ये कितना मुश्किल लगता है
खुद के सीने पर सिर रख जज्बात सुनो...
यूँ तो पूरी ग़ज़ल हीं ख़ूबसूरत है लेकिन इस शानदार शे'र के लिये विशेष बधाई आपको आदरणीय. सादर.

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Comment by मिथिलेश वामनकर on November 27, 2015 at 2:40am

आदरणीय सौरभ सर, आपको यह प्रयास पसंद आया जानकार आश्वस्त हुआ हूँ. आपका अनुमोदन मेरे लिए बहुत मायने रखता है. आपने बड़ी बारीक़ बात पकड़ी है. सदी को उम्र करना श्रेयकर है. पूरा चौकल बनाने का मोह भी 2-1 के स्थान पर 1-2 वज्न के लिए प्रेरित करता है. सदी उसी सम्मोहन का भी परिणाम है. इस प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार, बहुत बहुत धन्यवाद. सादर नमन 


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Comment by मिथिलेश वामनकर on November 27, 2015 at 2:35am

आदरणीय रवि जी, इस प्रयास पर आपका अनुमोदन आश्वस्त करता हुआ सा है. आपका स्नेह पाकर सदैव प्रेरित होता हूँ. ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार, बहुत बहुत धन्यवाद. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on November 27, 2015 at 2:34am

आदरणीया राजेश दीदी ग़ज़ल आपको पसंद आई, मेरा कहना सार्थक हुआ. ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार, बहुत बहुत धन्यवाद. सादर नमन 


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Comment by मिथिलेश वामनकर on November 27, 2015 at 2:33am

आदरणीय तेजवीर सिंह जी, ग़ज़ल के मुखर अनुमोदन,  सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार, बहुत बहुत धन्यवाद. 


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Comment by मिथिलेश वामनकर on November 27, 2015 at 2:32am

आदरणीय अजय जी ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार, बहुत बहुत धन्यवाद. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on November 27, 2015 at 2:32am

आदरणीय नादिर सर, आपकी दाद पाकर दिल खुश हो गया. ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार, बहुत बहुत धन्यवाद. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on November 27, 2015 at 2:32am

आदरणीय आमोद जी, ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार, बहुत बहुत धन्यवाद. 


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Comment by मिथिलेश वामनकर on November 27, 2015 at 2:31am

आदरणीय मनोज भाई जी, ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार, बहुत बहुत धन्यवाद. 

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