दोहा दशम्. . . . निर्वाणकौन निभाता है भला, जीवन भर का साथ । अन्तिम घट पर छूटता, हर अपने का हाथ ।।तन में चलती साँस का, मत करना विश्वास । साँसें तन की जिंदगी, तन साँसों का दास ।।साँसों की यह डुगडुगी, बजती है दिन-रात । क्या जाने कब नाद यह, दे जीवन को मात ।।मौन देह से सूक्ष्म का, जब होता निर्वाण ।…
२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना हो गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला आदमी का आदमी से बैर जब।२। * दुश्मनो की क्या जरूरत है भला रक्त के रिश्ते हुए हैं गैर जब।३। * तन विवश है मन विवश है आज यूँ क्या करें हम मनचले हों पैर जब।४। * सोच लो कैसा …
२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते आपके निर्देश हैं चर्या हमारी इस जिये को काश कुछ पहचान देते जो न होते राह में पत्थर बताओ क्या कभी तुम दूब को सम्मान देते ? बन गया जो बीच अपने हम निभा दें क्यों खपाएँ सिर इसे उन्वान देते दिल मिले थे, लाभ की…
दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर ।।लहरों से गीले सदा, रहते सागर तीर ।बनकर कितने ही मिटे, यहाँ स्वप्न प्राचीर ।।बनकर मिटते नित्य ही, कसमों भरे निशान ।लहरों ने दम तोड़ते, देखे हैं अरमान ।।दो दिल डूबे इस तरह , भूले हर तूफान ।व्याप्त शोर में…
जोगी सी अब न शेष हैं जोगी की फितरतेंउसमें रमी हैं आज भी कामी की फितरते।१।*कुर्सी जिसे भी सौंप दो बदलेगा कुछ नहींचढ़ती हैं आदमी में जो कुर्सी की फितरतें।२।*कहने लगे हैं चाँद को, सूरज को पढ़ रहेसमझे नहीं हैं लोग जो धरती की फितरतें।३।*किस हाल में सवार हैं अब कौन क्या कहेभयभीत नाव देख के माझी की…
दोहा पंचक. . . . . . दीपावलीदीप जले हर द्वार पर, जग में हो उजियार । आपस के सद्भाव से, रोशन हो संसार ।।एक दीप इस द्वार पर,एक पास के द्वार । आपस के यह प्रेम ही, हरता हर अँधियार ।।जले दीप से दीप तो, प्रेम बढ़े हर द्वार । भेद भाव सब दूर हों , खुशियाँ मिलें अपार ।।माँ लक्ष्मी का कीजिए, पूजन संग गणेश ।…
२१२२/२१२२/२१२२ **** खुश हुआ अंबर धरा से प्यार करके साथ करवाचौथ का त्यौहार करके।१। * चूड़ियाँ खनकें हिना का रंग हँसता स्वप्न सजनी के सभी गुलज़ार करके।२। * चाँद का पथ तक रहीं बेचैन आँखें, लौट आओ कह स्वयं उपहार करके।३। * रूठना पलभर मनाना उम्रभर को प्यार में सजनी ने यूँ इकरार करके।४। * मान…
बह्र : 2122 2122 2122 212 देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिलेझूठ, नफ़रत, छल-कपट से जैसे गद्दारी मिलेसंत सारे बक रहे वाही-तबाही लंठ बन धर्म सम्मेलन में अब दंगों की तैयारी मिलेरोशनी बाँटी जिन्होंने जिस्म उनका जल गयाऔर अँधेरा बेचने वालों को सरदारी मिलेकौन सी चौखट पे जाएँ सच बताने जब हमेंनिर्वसन राजा…
१२२/१२२/१२२/१२२*****पसरने न दो इस खड़ी बेबसी कोसहज मार देगी हँसी जिन्दगी को।।*नया दौर जिसमें नया ही चलन हैअँधेरा रिझाता है अब रोशनी को।।*दुखों ने लगायी है ये आग कैसीसुहाती नहीं है खुशी ही खुशी को।।*चकाचौंध ऊँची जो बोली लगाताकि अनमोल कैसे रखें सादगी को।।*बचे ज़िन्दगी क्या भला हौसलों कीअगर तोड़ दे …
1222-1222-1222-1222जो आई शब, जरा सी देर को ही क्या गया सूरज।अंधेरे भी मुनादी कर रहें घबरा गया सूरज।चमकते चांद को इस तीरगी में देख लगता है,विरासत को बचाने का हुनर समझा गया सूरज।उफ़क तक दौड़ने के बाद में तब चैन से सोया,जमीं से भी जो जाते वक्त में मिलता गया सूरज।तुम्हें रोना है जितनी देर, रो लो शाम का…