धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।जगमग है कण-कण यहाँ, शुभ पूनम की रात।जर्रा - जर्रा नींद में , ऊँघ रहा मदहोश।सन्नाटे को चीरती, सरसर बहती वात।मेघ चाँद को ढाँपते , ज्यों पशमीना शाल।परिवर्तन संदेश दे…See More
वहाँ मैं भी पहुंचा मगर धीरे धीरे १२२ १२२ १२२ १२२ बढी भी तो थी ये उमर धीरे धीरेतो फिर क्यूँ न आये हुनर धीरे धीरेचमत्कार पर तुम भरोसा करो मतबदलती है दुनिया मगर धीरे धीरेहक़ीक़त…See More
"कहें अमावस पूर्णिमा, जिनके मन में प्रीत लिए प्रेम की चाँदनी, लिखें मिलन के गीतपूनम की रातें मिलीं, धरती को सौगात सुंदर शब्दों में कहें, 'धामी' अपनी बात
सुंदर दोहे "
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे दिनभर देह को, झुलसाती हो धूपपर पूनम की रात को, खिले धरा का रूप।२।*जहाँ अकेलापन लिए, होता…"
१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल को तिजोरी रहा खोल सिक्के कहे झोपड़ी का नहीं मोल सिक्के।२। * लगाता है सबके सुखों को पलीता बना रोज…See More