• घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

    अच्छा लगता है गम को तन्हाई मेंमिलना आकर तू हमको तन्हाई में।१।*दीप तले क्यों बैठ गया साथी आकर क्या डर लगता है तम को तन्हाई में।२।*छत पर बैठा मुँह फेरे वह खेतों सेक्या सूझा है मौसम को तन्हाई में।३।*झील किनारे बैठा चन्दा बतियानेदेख अकेला शबनम को तन्हाई में।४।*घाव भले भर पीर न कोई मरने देजा तू समझा…

    By लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

    1
  • यथार्थवाद और जीवन

    यथार्थवाद और जीवनवास्तविक होना स्वाभाविक और प्रशंसनीय है, परंतु जरूरत से अधिक वास्तविकता अक्सर अकेलेपन और असंतोष की जड़ बन जाती है। जीवन का सार केवल सच्चाई तक सीमित नहीं, बल्कि उसमें दया, सहानुभूति और समझदारी का भी समावेश होता है। जब मुझे नई सोच और नए विचारों की आवश्यकता होती है, तो मैं उन लोगों की…

    By PHOOL SINGH

    1

  • सदस्य कार्यकारिणी

    ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )

    ११२१२     ११२१२       ११२१२     ११२१२  मुझे दूसरी का पता नहीं ***********************तुझे है पता तो बता मुझे, मैं ये जान लूँ तो बुरा नहींमेरी ज़िन्दगी यही एक है, मुझे दूसरी का पता नहीं मुझे है यकीं कि वो आयेगा, तो मैं रोशनी में नहाऊंगाकहो आफताब से जा के ये, कि यक़ीन से मैं हटा नहीं कहे इंतिकाम उसे…

    By गिरिराज भंडारी

    1
  • करेगी सुधा मित्र असर धीरे-धीरे -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

    १२२/१२२/१२२/१२२*****जुड़ेगी जो टूटी कमर धीरे-धीरेउठाने लगेगा वो सर धीरे-धीरे।१।*दिलों से मिटेगा जो डर धीरे-धीरेखुलेंगे सभी के  अधर धीरे -धीरे।२।*नपेंगी खला की हदें भी समय सेवो खोले उड़ेगा जो पर धीरे -धीरे।३।*भले द्वेष का  विष चढ़े तीव्रता सेकरेगी सुधा मित्र असर धीरे-धीरे।४।*उलझती हैं राहें अगर…

    By लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

    4
  • कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

    221/2121/1221/212 *** कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर होगी कहाँ से  दोस्ती  आँखें तरेर कर।। * उलझे थे सब सवाल ही आँखें तरेर कर देता  रहा  जवाब  भी  आँखें  तरेर कर।। * देती  कहाँ  सुकून  ये  राहें   भला मुझे पायी है जब ये ज़िंदगी आँखें तरेर कर।। * माँ ने दुआ में ढाल दी सारी थकान भी देखी जो…

    By लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

    2
  • ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं

    .सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं  जहाँ मक़ाम है मेरा वहाँ नहीं हूँ मैं. . ये और बात कि कल जैसी मुझ में बात नहीं     अगरचे आज भी सौदा गराँ नहीं हूँ मैं. . ख़ला की गूँज में मैं डूबता उभरता हूँ    ख़मोशियों से बना हूँ ज़बां नहीं हूँ मैं. . मु’आशरे के सिखाए हुए हैं सब आदाब   किसी का अक्स हूँ ख़ुद का…

    By Nilesh Shevgaonkar

    16
  • तरही ग़ज़ल

    2122 2122 2122 212 मित्रवत प्रत्यक्ष सदव्यवहार भी करते रहेपीठ पीछे लोग मेरे वार भी करते रहेवो ग़लत हैं जानते थे पर अहेतुक स्नेहवशहम सभी से मित्रवत व्यवहार भी करते रहेआपके मंतव्य में थे अन्यथा कुछ अर्थ तोमौन रहकर भाव से प्रतिकार भी करते रहेदुष्प्रचारित कर रहे वो क्या कहूँ छल छद्म पर शत्रुओं का पक्ष…

    By Ravi Shukla

    8
  • गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा

    सार छंद 16,12 पे यति, अंत में गागा अर्थ प्रेम का है इस जग में आँसू और जुदाई आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा कैसी रीत चलाई सूर्य निकलता नित्य पूर्व से पश्चिम में ढल जाता कब से डूबा सूर्य हृदय काअब भी नजर न आता धीरे धीरे बढ़ता जाए अंतस में अँधियारा दिशाहीन पथहीन जगत में भटक रहा बंजारा अभी शेष है कितनी…

    By बृजेश कुमार 'ब्रज'

    10

  • सदस्य कार्यकारिणी

    ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )

    १२२२    १२२२     १२२२      १२२मेरा घेरा ये बाहों का तेरा बन्धन नहीं हैइसे तू तोड़ के जाये मुझे अड़चन नहीं है समय की धार ने बदला है साँपों को भी शायदवो लिपटे हैं मेरी बाहों से जो चन्दन नहीं है जिन्हों ने कामनाओं की जकड़ स्वीकार की थी   उन्हीं की भावनाओं में बची जकड़न नहीं है न लो गंभीरता से तुम बुढ़ापे…

    By गिरिराज भंडारी

    11
  • ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं

    मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं मगर पाण्डव हैं मुट्ठी भर, खड़े हैं. .हम इतनी बार जो गिर कर खड़े हैं मुख़ालिफ़ हार कर शश्दर खड़े हैं.      शश्दर-आश्चर्यचकित, स्तब्ध . कभी कोई बसेगा दिल-मकां में हम इस उम्मीद में जर्जर खड़े हैं. . ऐ रावण! अब तेरा बचना है मुश्किल तेरे द्वारे पे कुछ बंदर खड़े हैं. . उसे…

    By Nilesh Shevgaonkar

    12