१२२/१२२/१२२/१२२
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जुड़ेगी जो टूटी कमर धीरे-धीरे
उठाने लगेगा वो सर धीरे-धीरे।१।
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दिलों से मिटेगा जो डर धीरे-धीरे
खुलेंगे सभी के अधर धीरे -धीरे।२।
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नपेंगी खला की हदें भी समय से
वो खोले उड़ेगा जो पर धीरे -धीरे।३।
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भले द्वेष का विष चढ़े तीव्रता से
करेगी सुधा मित्र असर धीरे-धीरे।४।
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उलझती हैं राहें अगर ज़िन्दगी की
सुलझती भी हैं वे मगर धीरे-धीरे।५।
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भला क्यों है जल्दी मनुज को ही ऐसी
हुए देव भी हैं अमर धीरे -धीरे।६।
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कड़क धूप चाहे समय की 'मुसाफिर'
मिलेंगे हमें भी शज़र धीरे-धीरे।७।
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मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
Tilak Raj Kapoor
यह तरही के लिए है या पृथक से?
Jun 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार। मक्ता सुधारने का प्रयास करता हूँ। आप भी संभव हो तो सुझाइए।
गुणीजनो का भी इंतजार है। सादर..
Jun 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
आ. भाई तिलकराज जी सादर अभिवादन। यह तरही से अलग है। इस पर आपसे मार्गदर्शन की अपेक्षा है।
नेट की समस्या से उत्तर में विलम्ब हुआ।इसका खेद है।
Jun 27